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रविवार, 31 जनवरी 2021

समय सिद्धांत पर ध्यान दें

 शीघ्रता, सटीकता और देरी समय की मापनी में इनका महत्व है, शुभ कर्म में शीघ्रता जरूरी है, ऐसे पलों को खोना नहीं जितना जल्दी हो सके समय से पहले ही करें। जहाँ प्रतिद्वन्द हो वहां सटिकता आवश्यक है जैसे शतरंज ही की चाल है, यह competition है। यहां समय की सटिकता आवश्यक है ऐसे कई विकट मोड़ आ जाते हैं जीवन में चाहे वह कार्यक्षेत्र हो या कोई और समय की जागरूकता जरूरी है। कभी कभी मानव दुर्घटनाओं में घिर जाता है अपनी तेजी का उसे विचार नहीं रहता सामने घटित होने वाला दृश्य उसे दिखाई नहीं देता उससे पहले घटना घट जाती है। मानव की गति ऐसे वक्त में यानी संघर्ष के दौर में शिथिल रखनी होती है जैसे गति सीमा को जांचना और चलना उसके अनुसार या उससे भी कम ये समझ आगे काम आती है....~पवन राज सिंह

#शिक्षा #बात #सीख #जिंदगी #गुरु #उपदेश #समझ #समय #काल

अनुभव महसुसियत ही जीवन है

 शूरू(ब्रह्माण्ड का उदय) और अंत (महाप्रलय)के मध्य जो जीवन की रगड़न है(क्रिया) वही (बोध)महसुसियत है। उसके पहले न भूख थी न तृप्ति न उसके पश्चात ही कुछ है या रहेगा। जो कुछ घटित है उसके मध्य परमात्म तत्व है। परम् सत्ता जिसे कहते हैं उसके पेट के दो हिस्से हैं अन्धकार और प्रकाश, वे ही दो हिस्से स्वर्ग या नर्क कहलाते हैं जो भी जीव, जो भी आत्मा,जैसा महसूस करे उसके लिए वो वही बन जाता है। भूख भी वही है और भोजन उपरान्त तृप्ति भी वही है। पर जो भूख और तृप्ति के मध्य की गई क्रिया है वही भोजन करना है जीवन की महसुसियत है जिसके पूर्व एक आभास है जिसके बाद में एक आभास है। अमावस से पुनम और पूनम से अमावस तक उजाला अँधेरे को खाता है या अँधेरा उजाले को इनका मध्य अंत और आरम्भ कहाँ है और क्या है....~पवन राज सिंह

#शिक्षा #बात #सीख #जिंदगी #गुरु #उपदेश #समझ #महसूस #अनुभव 

शुक्रवार, 29 जनवरी 2021

हमारी प्रार्थना स्वीकार हो कैसे

 परेशान हैं सुनता ही नहीं परमेश्वर ये प्रश्न है ? हमारी प्रार्थना उस परमेश्वर तक कैसे नहीं जाती है, वो अपने श्रृंगार से रीझता है तो हम उसका श्रृंगार नित-प्रति करें,वो भोग से रीझता है तो हम उसको भोजन परोसें, वो सुंदरता से रीझता है तो उसके सामने सुंदर होकर खड़े हो जाएँ। किन्तु होता इसके बिलकुल विपरीत है धनी से पहले वह दरिद्र की सुनता है। भोजन को छोड़ वह भूखों के पास पहले पहुंचता है। फ़टे हालों के हाल जानने के लिए वह खुद फ़टे हाल उनसे मिलने जाता है। तो ऐसा क्या है दरिद्र निर्धन और फ़टेहालों के पास जो (उसको)परमेश्वर को आकर्षित करता है। श्रीकृष्ण की कहानी में कुब्जा और सुदामा ही क्यों उत्तम उदाहरण हैं। क्यों राम शबरी ही के बेर खाते हैं क्यों केवट को गले लगाते हैं। खोजिए कोनसी ट्रिक है....~पवन राज सिंह

गुरुवार, 28 जनवरी 2021

दिव्य रस में सराबोर होना है

 तय शुदा समय है हर वस्तु का, उसके बाद उसका उपयोग अनुपयोगी हो जाता है। हमें जो आनन्द इस संसार में प्राप्त है हम सोचते हैं ऐसा कुछ अब आगे नहीं मिलेगा। हमारी महसुसियत ही हमें बहला रही है...
हम कड़ाही के पात्र में उन तीन चार जलेबियों की तरह हैं जो हलवाई की झर में आने से हर बार छूट जाती हैं। हमें यह ज्ञान नहीं है की इस जीवन के अंत के बाद एक सुगम सफर का आरम्भ है। अगले पात्र में हमें मीठे रस में सराबोर कर दिया जाएगा पर हमें इस भवसागर की आंच में जल रहे इच्छाओं के तेल में पकने की आदत सी हो गई है। अगले पात्र में जब रस में सराबोर हम हों जाएंगे तो हमें  उसमें तो आनन्द मिलेगा ही पर उसको जो चखने वाला मालिक है वह अनुभूति परमानन्द की होगी...~पवन राज सिंह

मंगलवार, 26 जनवरी 2021

आकाश से साधना का मिलन

 मस्तिष्क की ऊंचाइयों और दिल की गहराइयों में बड़ा फर्क है। एक आकाश के जितना ऊँचा और एक साधना के धरातल से गहरा है, आकाश की अपनी ऊंचाइयां हैं वह ऊर्जा का रूप है वह स्वयं सिद्ध है पर साधनायें जब अपना रूप दिखाती हैं तो वह मस्तिष्क की ऊंचाइयों से भी परे आकाश को नीचे छोड़ ऊपर की ओर उर्ध्वगामी हो जाती हैं। वह सातों आकाशों को छोड़ परम्-पुरुष से जा लगती है। आकाश को साधना के स्तर को समझना चाहिए और साधना को चाहिए की वह आकाश का सम्मान करे। आकाश में जो दोनों ज्योति पुंज हैं चन्द्र और सूर्य वह धरती की साधना की कामना भी है और उसके कल्याण के साधन भी। साधना का साधन आकाश है, न साधना को अंहकार हो न ही आकाश को ग्लानि हो।  दोनों का मिलन ही परम् सत्य है......

~पवन राज सिंह

सोमवार, 25 जनवरी 2021

कोई तो इसका जवाब दे

 मन के पेड़ पर जो पंछी कलरव कर रहे हैं इनको कोई ऐसा दाना डाला जाये जिससे की बार बार दिमाग की नसों में होने वाला स्पंदन सर्वदा के लिए समाप्त हो जाये। क्या उपाय इस ख्वाहिशों के बागीचे में उगे इन मुरझाये पौधों का जिनको सींचते सींचते मनु की मनुष्यता घिसती चली जा रही है। इस भवसागर के अंदर कोई किनारा तो नज़र आना चाहिए बार बार हर बार नहीं हारने वाली दौड़ जिसमें सभी भाग लेते हैं सभी हार जाते हैं सभी को यह गुमान भी रहता है की हम ही जीतेंगे। इन सब सवालों के लिए कोई ऐसा उपाय खोजा जाये जो इन पर पूर्ण विराम लगा दे। उपाय वह कुंजी है जो जन्मों के इस फेर को मिटा देगी......?????~पवन राज सिंह

रविवार, 24 जनवरी 2021

कितने नासमझ हैं हम

 हमारी समझ ऐसी है जैसे मन्दिर में बजने वाली टनटन को बच्चा कुल्फ़ी वाले की टनटन समझ लेता है,  हमको इशारा कुछ और मिलता है और हम उसे समझते कुछ हैं हाँ माना इसमें परमेश्वर की माया हमें भ्रमित करती है पर यह जगत कल परसों तो नहीं बना मनुष्य को ये सब अनुभव भी है और जानकारी भी पर फिर भी मासूम सा समझदार मनुष्य बार बार हर बार सामने हो रहे इशारों को नहीं समझता। इशारा करने वाला कोई व्यसन से हमें मुक्ति दिलाने के लिए कुछ कहानी कह सकता है, कोई वैद्य गम्भीर रोग से मुक्ति दिलाने के लिए कड़वी दवा दे रहा है। यह हम टाल देंगे तो टाल दिए जाएंगे। अपने आस-पास दैनिक जीवन में हो रहे इशारों को देखिये सृष्टि हमें इशारों में कुछ कह रही है.....कितने नासमझ हैं हम

~पवन राज सिंह

गुरुवार, 21 जनवरी 2021

पुनः विचार करें

 जो जीवन की विधा तुमने सीखी थी उस शैली से अन्य कई शैलियाँ हैं, अपने ही ज्ञान को सब कुछ मान लेना ही श्रेष्ठता नहीं है। स्वयं की कल्पना ही श्रेष्ठतम नहीं है उसमें आगे आकर कोई अड़चन आ सकती है।श्रष्टि के प्रारम्भ में हर उस लावा के पिंड का यह संसार है जो ज्वालामुखी के मुख से निकल रहा है। किसी की सरलता किसी का अपनापन किसी का प्रेम ये सब मनुष्य के अलग रूप हैं जो उन्हें भगवान से मिले हैं। तुम्हारा तेज मस्तिष्क तुम्हें अहंकार के नजदीक ले जा सकता है इसलिए उस पाप से बचने के लिए इस गुण से लिप्त न रहें। क्योंकि संसार चलाने वाले की नजर में जो नजारा है उसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते। तो पुनः विचार करें कहाँ ये त्रुटि हम कर रहे हैं तो प्रयास करें ये हमसे आगे न हो.....
.~पवन राज सिंह

बुधवार, 20 जनवरी 2021

अभ्यास कीजिए समझिए नहीं.....

 मनुष्य जन्म से ही किसी न किसी क्रिया को कर  रहा है। कोई जीव यह माने की केवल हाथ पैर का चलना ही क्रिया है नहीं यहां तक की देखना, सुनना, मनन करना बोलना आदि सभी क्रियाएँ हैं। दो क्रियाओं के मिलन को योग(जमा) तो कहते ही हैं पर इसमें आध्यात्मिक रूप में भी मिलन होता है जिसे आत्मा का ज्ञान से योग होता है। ज्ञान अनुभव का नाम है जो मन बुद्धि अहंकार को अनुभव होता है पर योगिक क्रिया में कोई व्यक्ति उसे समझने का प्रयास करता है तो विफल हो जाता है। उसके किन्तु परन्तु उसे रोकते टोकते हैं। यह (योग) निरन्तर प्रयास की एक कड़ी है जो व्यक्ति कड़ी से कड़ी मिलाता जाएगा वह एक दिन कोई चेन बना ही लेगा। अभ्यास करिए अनुभव कीजिए समझिए नहीं बस करते रहिए बनत बनत बनजाई.....~पवन राज सिंह

मंगलवार, 19 जनवरी 2021

शरणागति ही श्रेष्ठ है

 हम जो कह रहे हैं वह परम् शरणागति की ओर तुम्हें ले जाएगी। यही मार्ग मुक्ति का है बाकी सभी मार्गों में आप जाने क्या क्या प्राप्त कर लेंगे किन्तु यह complete surrender ही मनुष्य को गन्तव्य तक पहुंचाएगा। अब यहां जो दिक्कत है वह यह की कुछ लोगों की तो भौतिकता से आँख ही नहीं खुलती और कुछ ने स्वयं को ही बुद्धिमान जानकर तर्क करने की अड़चन पैदा कर रक्खी है। यह तर्क शक्ति अपने साथ में कुछ कुत्तों को पाले रखती है हर किसी पर यह अपने कुत्ते छोड़ देती क्या,क्यों,कैसे और कहाँ जो उनके असंख्य सवालों का जवाब दे उसके बाद तर्क को भरोसा आएगा पर उसके भरोसे का क्या भरोसा। वह तो खुद भटका है वह कैसे जान पाएगा। जो लकीर खेंची है उसी पर चलने का प्रयास करें चलती रेल में उतरने से गन्तव्य प्राप्त नहीं होगा हर कहीं न उतरें अपने अंदर डूबे रहें क्या पता आप स्वयं ही इस भवसागर को पि जाएँ......~पवन राज सिंह

सोमवार, 18 जनवरी 2021

आत्म-मिलन यानी साक्षात्कार

 कई कहानियों कई किरदारों कई रूप रँग में परमात्मा हमें अपनी कलाओं से अपनी और आकर्षित भी करता है, प्रेरित भी करता है, कभी रोगी की कथा कभी दरिद्र की कथा कभी किसी राजमहल की कहानी में वो है। हर और वही है तुम भी वही हो मैं भी वही हूँ। जब तक ये साँसों का कारोबार चालू है, हमें अपने आत्म-मिलन के साक्षत्कार के लिए प्रयासरत रहना चाहिए, जहाँ ये साक्षात्कार का पल गुजरा उसी स्थान को कुरुक्षेत्र के मध्य दो सेनाओं से घिरे हुए स्वयं को पाओगे और जो तुम्हें तुम्हारे सामने प्रवचन दे रहा होगा वही परमात्मा है। ये वही जगह है जहाँ जीसस प्रवचन देते हैं अपने अनुयायिओं को ये वही तूर का पहाड़ है जहाँ मूसा को परमात्मा ने अपनी ज्योति भर दिखाई और उससे बात की ये वही जगह जिसे गार-ए-हीरा कहते हैं जहाँ जिब्रील ने मुहम्मद साहब को ज्ञान सिखाया। स्वप्न्न से समाधि की यह यात्रा तुम्हारे ध्यान से शुरू होती है, इसमें नाद को सुनना बाद की बात है पहले खर्राटों से काम चलाना होता है, मिलन ही तो जरूरी है हम जो दो समझ रहे हैं यथार्थ में एक ही है बस आभास की कमी है। उसका मिलन ही जागृति है यह क्षण ज्ञान के चक्षुओं को खोल देता है। किसी भी कहानी को प्रेरणा का केंद्र मानते हुए उस किरदार की नकल ही करते रहो तुम्हारा कल्याण जल्द ही होगा~पवन राज सिंह

रविवार, 17 जनवरी 2021

सत्य या झूँठ

 सत्य की सुई उठाने का विचार ही माथे पर पसीना ला देता है किन्तु झूँठ के गठ्ठर उठाने में आदमी हिचकता नहीं है। हम यह जानते हुए की पाप कर्म हमें और हमारे धर्म (सञ्चित पूण्य कर्म फल) को हानि पहुंचाएगा फिर भी समय काल परिस्थित वश हम इस पाप कर्म की प्रक्रिया को चालु रखते हैं। कुछ चरित्र ऐसे होते हैं जो कटुता रखते हैं किन्तु बनते मीठे हैं कुछ ऐसे होते हैं जो मौज में रहते हैं उन्हें समझने में भूल होती है, उनको देखते ही हम दूर सरक जाते हैं किन्तु ऐसे लोग काम के होते हैं खरा खरा बोलने वाले ऐसे लोग भले होते हैं। सत्य और झूँठ की भी ऐसी ही कहानी है एक मीठा लगता है बोलने में एक खरी खरी कहता इसलिए उससे हम किनारा करते हैं। झूँठ के तो कई सर होते हैं वो किसी भी जगह से अल्प काल के लिए octopus की तरह आपको बचा सकता है। सत्य निहत्था है उसकी चाल भी पियादे की तरह सीधी है वह झूँठ के घोड़े की तरह टेढ़ी चाल चलना नहीं जानता। सत्य का उपासक सदैव जीवन में दुःख और पीड़ा ही भुगतता है, किन्तु जब न्याय के देवता से साक्षात्कार होगा तो यह सत्य एक सत्य के बदले लाखों  झूँठ के फन्दों से लिप्त पापों को काटेगा और वहां यह सत्य संख्या में कम होगा किन्तु इसका प्रतिफल हमें लाखों गुणा अधिक प्राप्त होगा। यहां यह सत्य एक सुखी बासी रोटी के निवाले जैसा प्रतीत हो रहा है किन्तु न्याय के देवता के आगे यह वह राजसी भोजन से भी अनमोल होगा तो फैसला आपको करना होगा, सत्य के साथी बनोगे या झूँठ के व्यापारी  .....

 ~पवन राज सिंह

शनिवार, 16 जनवरी 2021

दिव्यता कैसे प्राप्त हो

 आत्मा और परमात्मा के मध्य एक व्यक्ति और है जिसने आत्मा होते हुए परमात्मा से साक्षात्कार किया है, उसे दिव्य आत्मा कहते हैं उस दिव्य आत्मा को एक पुलिया का काम करना आता है और बड़ी सहजता से वह उस कार्य को करता है। आत्मा को परमात्मा से जोड़ देता है। तो यहां आत्मा परमात्मा और दिव्य आत्मा तीन हो गए। दिव्य आत्मा कभी आत्मा था पर वह भी किसी दिव्य आत्मा के सान्निध्य में रहकर दिव्य आत्मा हुआ। यानी शिष्य था जो अब गुरु है और जो अब शिष्य है या शिष्य बनेगा वह बिलकुल सहजता से धीरे धीरे एक दिन गुरु बन जाएगा। यह निरन्तर चलने वाला प्रवाह है। 

~पवन राज सिंह

शुक्रवार, 15 जनवरी 2021

शक्ति को मन के समन्दर में न बहायें

 आपके शरीर में जो शक्ति प्राण बनके दौड़ रही है। उस शक्ति में जीवन का वृक्ष अपने भीतर से पत्तियां फूल और फल खिला रहा है। इस शक्ति में कुछ और भी गूढ़ शक्तियां हैं जो आपातकाल के समय के लिए इसी शरीर के अंदर कहीं रक्खी हैं इन जीवनदायी शक्तियों का मनुष्य भौतिकता में बहकर ख़ात्मा न कर दे तो ऋषियों ने कहा जीव को चाहिए की इस शक्ति को मन के समन्दर में अकेला न छोड़ें, प्रयास यह रहे की हमें शक्ति का सृजन करना है न की शक्ति को समाप्त करना है। कभी आँख कुछ कहती है कभी नाक कुछ कहता है कभी कान कुछ कहता है सभी रसेंद्रियां अपनी अपनी पूर्ति के लिए इस शक्ति को खत्म कर देंगी। आप शक्ति को सृजनात्मक कार्यों में ही लगायें। मरना तो है ही एक दिन यह जानकर शक्ति को न मारें मन की इच्छा को मारें यानी उस पर भी शने शने काबू पाया जाए।

~पवन राज सिंह

बुधवार, 13 जनवरी 2021

पारस से खुद को रगड़ना होगा

 एक आम आदमी सिद्ध योगी सी बातें कैसे कर सकता है।  यह विचारों की खुराक रोज वह पहले खाया करता था फिर वर्षों उसने इन सभी विचारों को घोल कर पिया किसी सिद्ध गुरु की शरण में अब उसके अंदर से भी वही जवाब देता है। यह ऐसा है जैसे कुछ लोहे के टुकड़े लो उनमें से किसी भी एक को कुछ महीनों चुम्बक के आलिंगन में या सम्पर्क में रहने दो,फिर उन्हें जब पृथक करोगे तो चुम्बक के गुण कुछ कम मात्रा में सदा के लिए उस लोहे के टुकड़े में आ जाएंगे। जो इसमें इससे पूर्व न थे। बस एक बार किसी पारस पत्थर से खुद को रगड़ना होगा भौतिकता धूल जाएगी आपके दिल दिमाग से दूसरी बार सम्पर्क में आओगे तो आनन्द ही आनन्द... फैसला तुम्हें करना है ढूँढो कोई मीरा कोई नामदेव कोई सूरदास कोई तुकाराम 

~पवन राज सिंह

मंगलवार, 12 जनवरी 2021

जरा पलटो देखो क्या छूट गया है

 यह हो सकता है जो व्यवस्था आप बनाना चाहते हैं बन जाए जो ऐश्वर्य अनुभव करना चाहते हैं वह भी प्राप्त हो जाए। उसके पश्चात क्या? क्या यह अनुभूति तुम्हें पूर्णता में मिला सकती है। पूर्णता किसी एक तरफ की पुरानी दीवार को ढहा कर नई बनाने से नहीं होगी। यह पूर्णता तो केवल भौतिकता की है किन्तु इसके अलावा भी तीन दीवारें हैं जो फिर नई बनानी होंगी। ये तीन तरफ का काम अभी बाकी है इसके बाद पूर्ण मानव कर्म की गद्दी प्राप्त होगी तुम्हें।  तुम्हारे जन्म से अब तक जो कुछ तुम भुला चुके हो जानते बुझते वह सब याद करो उसे सुधारो, वह सत्य हो या कर्म हो या धर्म या सम्बन्ध हो या दान हो या आराधना। आँख तुमने बन्द कर रक्खी हैं जगत में सब कुछ कर सकते हो घुमो जरा पलटो देखो

 ~पवन राज सिंह

रविवार, 10 जनवरी 2021

अपने अपने चश्मे उतारो

 सत्य की रौशनी केवल एक है, परमात्मा सबका एक ही है। साईं बाबा का वचन जो अक्सर बोला करते थे 'सबका मालिक एक'

धार्मिक मानसिकताएं और मान्यताएं सबकी अपनी अपनी हैं। जिस प्रकार सूर्य का प्रकाश एक है पर धरती पर रहने वालों ने इसको अपने अपने रँगीन चश्मों से देख समझ रक्खा है। गलती इसमें किसी की नहीं जिस वातावरण में जिस स्थान पर जिस भाषा में जिसे जो समझ आ सकता था परमेश्वर ने उसे उसी रूप में ज्ञान को सम्पादित किया। बात टकराव की वहां आई जब एक ने कहा मेरा चश्मा अच्छा है इसका रँग तेरे वाले से अच्छा है। वो रँग और ढंग की बातों पर उलझने लगे। जो कुछ है इस ब्रह्माण्ड में उसका एक रचियता है। आप अपने चश्मों को उतारकर वास्तविक सूर्य के प्रकाश को देखो.

~पवन राज सिंह

शनिवार, 9 जनवरी 2021

परमेश्वर की रचना का निरादर न करें

 संसार की रचना करने वाले ने कुछ गलत तो नहीं रच दिया, कहीं कोई त्रुटि तो उससे नहीं हो गई। यह अक्सर सोचना पड़ता है मुझे, मैं यह क्यों सोचता हूँ क्या मेरा यह विचार गलत है। आप को यह लगेगा की यह क्या विचार आया। हाँ, यह विचार आया किन्तु इसके पीछे कारण है; जब भी कोई व्यक्ति यह सोचता है की मेरे साथ संसार में गलत हो रहा है, मैं सबसे दुखी, दुर्भाग्यवान या अभागा हूँ मेरा जीवन ही गलत है तो यह विचार उस रचनाकार की कृति को दोष देता है। क्योंकि जिसने तुम्हें रचा है वह सार्थक रचियता है उसका फेंका हर बीज अद्भुत है सकारात्मक है। क्यों कोई अपने आपको हीन और तुच्छ समझे,ऐसा विचार परमेश्वर को दोष देने के पाप जैसा है।

~पवन राज सिंह

जीवन का खेल


जिसने इस जीवन के प्रांगण में तुम्हें खेल खेलने के लिए यहां भेजा.....खेल तो यह नहीं था जो तुम खेल रहे हो अलमारी खोलना बन्द करना तो नहीं सिखाया था तुम्हें, तुम्हें तो खोलने थे वो खिड़कियों के पल्लै जो पूर्व जन्म में तुमने ढलती उम्र के साथ बन्द कर दिए थे। पूर्व जन्मों से सञ्चित जो प्रकाश तुम्हारे हिस्से का था न तो तुम उसे प्राप्त कर पा रहे हो और न ही उसकी नई खेप इस जन्म में कमाने की कोशिश कर रहे हो। भौतिकता का लेप लगाकर सारे बदन पर अपनी रँगीन तबियत का रँगीन नजारा करने वालों देखो, जब तुम पहले मनुज के काल में जन्मे थे तब तुम क्या थे और आज क्या बन गए हो। स्वतः ही तुम्हारे मस्तिष्क की ट्यूब लाइट बन्द होकर तुम्हारी आत्मा का सूर्य जगमगा उठेगा तुम्हें जाग्रुत करेगा, अपने नचिकेता को जगाओ शायद तुम्हें अपने पूर्व जन्म का कोई फल मिल जाये, जन्मों से चले आ रहे चक्र को तुम विराम दे सको.....

तो इन्तजार किस बात का किसी पीपल के पेड़ के नीचे बैठो कुछ देर....

~पवन राज सिंह

ध्यान से दुरी या नजदीकी


 ध्यान से दुरी या नजदीकी:

क्या ध्यान के विमान पर बैठकर हम उड़ सकते हैं, अपनी असफलताओं को अपनी दुविधाओं को दूर कर सकते हैं। ध्यान क्या कोई राज-मार्ग है जो सामान्य सड़क से अलग है, जहाँ इस तरह की यातायात की उथल पुथल नहीं है। क्या इन वाहनों का कोलाहल नहीं है वहाँ, यही वे प्रश्न हैं जो चिर काल से सामान्य व्यक्ति अपने ध्यान से दुरी और नजदीकी के अंतर को खोजता रहता है। आइये कुछ ध्यान पर ध्यान दें
किसी भी योगिक सम्प्रदाय की विधियाँ या प्रक्रिया जिनसे सामान्य व्यक्ति एक सिद्ध पुरुष और फिर दिव्य पुरुष बनता है। यह एक सहज और सरल और नियमित प्रयास है जो बनते बनते बन जाता है। किसी से किसी ने कहा राम का नाम लो श्वास के साथ एक श्वास भी खाली न जाये, अभ्यासी ने कहा मुझसे तो राम कहा न जाएगा तो अनुभवी ने उससे कहा मरा तो कह सकते हो। अभ्यासी बड़ा प्रसन्न हुआ वह एक लुटेरा था राह चलतों को लूटना मारना उसका काम था उसके लिए मरा कहना सहज था। उसने उस अनुभवी की बात को बहुत सहजता से स्वीकारा वह एक सिद्ध पुरुष हुआ फिर दिव्यता प्राप्त हुई। आप जिस जाती धर्म संस्कार से जुड़े हैं आस पास जो भी सीख रहे हैं। उसे शने शने करते रहें श्वास के साथ जो भी आता जाता नाम है वह ही तुम्हें योगी बना देगा सारा सिद्धांत श्वासों के मध्य है। आँख बन्द करके करेंगे तो ध्यान होगा और गहरे में उतरेंगे तो समाधि पर इन सबसे पहले इनके बारे में सोचना बंद करना होगा बैठना होगा। मन (mood) के इंजन को बन्द नहीं कर सकते तो उसके गियर बॉक्स को न्यूट्रल करना होगा। जो कुछ सहजता से हो जाए वह करते रहिए। यहां हम आपको यह तक कह रहे हैं जो भी आप करेंगे जो भी आप सीख चुके हैं उसी में एकाग्र रहें। हम अपनी और से कुछ आप पर थोपना नहीं चाहते। बस प्रयासरत रहें

~पवन राज सिंह

दोषारोपण से बचें

 दोषारोपण से बचें

दूसरे को दोष देकर पाप लेने वाले बहुत हैं, भरे पड़े हैं अटे पड़े हैं। जरा सी नजर घुमी किसी ने पीठ फेरी और उसकी बुराई शुरू दोषारोपण लगाने में लोग तो Phd० करके बैठे हैं। महारत हासिल है उनकी कोई बात सुन ले तो तीन चार दिन आदमी उनका कायल हो जाता है। ऐसे व्यक्तियों का साथ अच्छा नहीं है, आज ही त्यागिये। अच्छाई देखिये लोगों में उनकी व्यथा सुनिए उनका वास्तविक हाल समझिए,एक दिन उनकी जूती में पैर रख के देखिए। आपको स्वतः आभास होगा और आप दोषारोपण के पाप से बचेंगे इससे आपके किए पूण्य समाप्त  नहीं होंगे इसमें श्रम नहीं करना बस थोडा कन्ट्रोल करना है।  आगे आपकी मर्जी या खुदगर्जी..

~पवन राज सिंह

कलाम 19

 दर्द-ए-इश्क़ दिल को दुखाता है बहुत विसाल-ए-यार अब याद आता है बहुत ज़ब्त से काम ले अ' रिंद-ए-खराब अब मयखाने में दौर-ए-ज़ाम आता है बहुत साक़ी...