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मंगलवार, 26 जनवरी 2021

आकाश से साधना का मिलन

 मस्तिष्क की ऊंचाइयों और दिल की गहराइयों में बड़ा फर्क है। एक आकाश के जितना ऊँचा और एक साधना के धरातल से गहरा है, आकाश की अपनी ऊंचाइयां हैं वह ऊर्जा का रूप है वह स्वयं सिद्ध है पर साधनायें जब अपना रूप दिखाती हैं तो वह मस्तिष्क की ऊंचाइयों से भी परे आकाश को नीचे छोड़ ऊपर की ओर उर्ध्वगामी हो जाती हैं। वह सातों आकाशों को छोड़ परम्-पुरुष से जा लगती है। आकाश को साधना के स्तर को समझना चाहिए और साधना को चाहिए की वह आकाश का सम्मान करे। आकाश में जो दोनों ज्योति पुंज हैं चन्द्र और सूर्य वह धरती की साधना की कामना भी है और उसके कल्याण के साधन भी। साधना का साधन आकाश है, न साधना को अंहकार हो न ही आकाश को ग्लानि हो।  दोनों का मिलन ही परम् सत्य है......

~पवन राज सिंह

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