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गुरुवार, 21 जनवरी 2021

पुनः विचार करें

 जो जीवन की विधा तुमने सीखी थी उस शैली से अन्य कई शैलियाँ हैं, अपने ही ज्ञान को सब कुछ मान लेना ही श्रेष्ठता नहीं है। स्वयं की कल्पना ही श्रेष्ठतम नहीं है उसमें आगे आकर कोई अड़चन आ सकती है।श्रष्टि के प्रारम्भ में हर उस लावा के पिंड का यह संसार है जो ज्वालामुखी के मुख से निकल रहा है। किसी की सरलता किसी का अपनापन किसी का प्रेम ये सब मनुष्य के अलग रूप हैं जो उन्हें भगवान से मिले हैं। तुम्हारा तेज मस्तिष्क तुम्हें अहंकार के नजदीक ले जा सकता है इसलिए उस पाप से बचने के लिए इस गुण से लिप्त न रहें। क्योंकि संसार चलाने वाले की नजर में जो नजारा है उसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते। तो पुनः विचार करें कहाँ ये त्रुटि हम कर रहे हैं तो प्रयास करें ये हमसे आगे न हो.....
.~पवन राज सिंह

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