शूरू(ब्रह्माण्ड का उदय) और अंत (महाप्रलय)के मध्य जो जीवन की रगड़न है(क्रिया) वही (बोध)महसुसियत है। उसके पहले न भूख थी न तृप्ति न उसके पश्चात ही कुछ है या रहेगा। जो कुछ घटित है उसके मध्य परमात्म तत्व है। परम् सत्ता जिसे कहते हैं उसके पेट के दो हिस्से हैं अन्धकार और प्रकाश, वे ही दो हिस्से स्वर्ग या नर्क कहलाते हैं जो भी जीव, जो भी आत्मा,जैसा महसूस करे उसके लिए वो वही बन जाता है। भूख भी वही है और भोजन उपरान्त तृप्ति भी वही है। पर जो भूख और तृप्ति के मध्य की गई क्रिया है वही भोजन करना है जीवन की महसुसियत है जिसके पूर्व एक आभास है जिसके बाद में एक आभास है। अमावस से पुनम और पूनम से अमावस तक उजाला अँधेरे को खाता है या अँधेरा उजाले को इनका मध्य अंत और आरम्भ कहाँ है और क्या है....~पवन राज सिंह
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