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शनिवार, 30 नवंबर 2019

प्रियंका रेड्डी को श्रद्धांजलि

Priyanka Reddy a vetarnary doctor in proffession. She was raped and brutally burnt by some culprits...... Indian punishment must be cruel to these kind of culprits.
#JusticeForPriyankaReddy

क्या गुजर रही है बेटियों पर
मुल्क का कोई बागबां तो हो

बुलबुलें कूकेँ तितलियाँ डोलें चमन में
कोई उनका भी निगेहबां तो हो

शर्म से झुक गईं हैं पलकें कँवल की
कोई उस पर भी मेहरबाँ तो हो

आरजू क्या है पूछते हो कलियों से
बेजबानों की कोई जबां तो हो

परवरिश हिफाजत जरूरी है क्यारियों की
इनका कोई पक्का मकाँ तो हो

हर दौर में लुटी है बेटियों की शर्म यहाँ
दरिंदगी मिटाने का कोई सामाँ तो हो

क्या गुजर रही है बेटियों पर.............
मुल्क का कोई बागबां तो हो
मुल्क का कोई बागबां तो हो.....
मुल्क का कोई बागबां तो हो.....

पवन राज सिंह


शनिवार, 23 नवंबर 2019

संत नामदेव और उनकी शिक्षाएँ

भारतीय सन्तों में एक सन्त ऐसे हैं जिनका नाम उच्च पद को प्राप्त है उनका नाम है संत नामदेव आइये जानते हैं। इनके बारे में
संत नामदेव जी (29 अक्टूबर, 1270 –1350) का जन्म (महाराष्ट्र) के गाँव "नरसी"-"वामनी" में हुआ । यह गाँव "ज़िला सितारा" में है और अब इसका नाम "नरसी नामदेव" है । उनके पिता जी का नाम दमशेटी और माता जी का नाम गोनाबाई था। उनके पिता जी छीपे थे, जो कपड़ों की सिलाई का काम करते थे। उन्होंने ईश्वर की भक्ति और गृहस्थ जीवन की श्रेष्ठता पर ज़ोर दिया। संत ज्ञानदेव और दूसरे संतों के साथ आप ने सारे देश का भ्रमण किया। वह पंजाब के गुरदासपुर ज़िला के गाँव घुमाण में बीस साल रहे। उन्होंने मराठी, हिंदी और पंजाबी में काव्य रचना की। उन की वाणी गुरू ग्रंथ साहिब में भी दर्ज है

एक बहुत ही अचंभित करने वाली कहानी इनके जीवन से जुडी है जब आप छोटे थे तो कहीं बैठकर रोटी खा रहे थे, उसी समय एक कुत्ता आया और रोटी छीनकर चला गया संत नामदेव उस समय बालक ही थे उन्होंने हाथ में घी की कटोरी हाथ में ली और कुत्ते के पीछे पीछे भागे और भागते भागते कुत्ते से कहने लगे प्रभु आप घी तो लगवा लें इस रोटी पर बिना घी की रोटी आपको अच्छी नहीं लगी तो, मैं अपने आपको कोसूँगा। इस प्रकार की शरणागति उस परमात्मा के प्रति रखते थे संत नामदेव

दोहे संत नामदेव जी के ;-


(अभिअंतर नहीं भाव, नाम कहै हरि नांव सूं,
नीर बिहूणी नांव, कैसे तिरिबौ केसवे)  (1)


(अभि अंतरि काला रहै, बाहरि करै उजास,
नांम कहै हरि भजन बिन, निहचै नरक निवास) (2)


(अभि अंतरि राता रहै, बाहरि रहै उदास,
नांम कहै मैं पाइयौ, भाव भगति बिसवास) (3)


(बालापन तैं हरि भज्यौं, जग तैं रहे निरास,
नांमदेव चंदन भया सीतल सबद निवास) (4)


(पै पायौ देवल फिरयौ, भगति न आई तोहि,
साधन की सेवा करीहौ नामदेव, जौ मिलियौ चाहे मोहि) (5)


(जेता अंतर भगत सूं तेता हरि सूं होइ,
नाम कहै ता दास की मुक्ति कहां तैं होइ)  (6)


(ढिग ढिग ढूंढै अंध ज्यूं, चीन्है नाहीं संत,
नांम कहै क्यूं पाईये, बिन भगता भगवंत ) (7)


शुक्रवार, 22 नवंबर 2019

सुलतान बाहू जीवन परिचय और शिक्षाएँ


सुल्तान बाहू जन्म 1628/29 में हुआ आप एक बहुत ही पहुँचे हुए सूफ़ी मत के सन्त हुए, उनके पिता का नाम बायजीद मुहम्मद था शाहजहाँ के काल में सुलतान बाहू के पिता मुलतान में रहते (पाकिस्तान अब) थे। इसी शहर मुलतान में सूफ़ी सन्त सुल्तान बाहू का जन्म बायजीद मुहम्मद के घर में हुआ। सुल्तान बाहू को उनके मुरीदों और चाहने वालों ने उनको सुल्तान-उल-आरिफ़िन की उपाधि से सम्मान दिया जिसका मतलब फकीरों के बादशाह से लगाया जा सकता है।  आपका जीवन काल 1630 से 1691 तक लगभग 63 वर्ष की उम्र का अंदाजा लगाया जाता है। आपकी माँ का "रास्ती" था धार्मिक विचारों वाली शांत स्वभाव वाली स्त्री के रूप नेक जीवन जीने वाली स्त्री के रूप में बिताया।
सुलतान बाहू की माता ने उनका नाम (बाहू) रक्खा जिसका मतलब आध्यात्मिक दृष्टि से अरबी भाषा में बा' के अर्थ में (साथ में)और हू' के मायने में "परमात्मा (मालिक)" होता है। यानी वह व्यक्ति जो मालिक से मिला हुआ है या उसके साथ है मालिक से लगाया जाता है।
सुल्तान बाहू की शिक्षा इन निम्न लिखित पंजाबी काफ़ी (रुबाई) में है जिनसे व्यक्ति को बहुत ही आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होता है। गुरु (मुर्शिद) और शिष्य(मुरीद) की परम्परा के मार्ग से होते हुए व्यक्ति परमात्मा तक किस तरह ख़ुद को मिला सकता है। आइये जानते हैं;-

(1)
(काफ़ी नम्बर एक पंजाबी भाषा)

'अलिफ़ अल्ला चम्बे दी बूटी, मुरशिद मन विच लाइ हू।
नफ़ी इस्बात दा पाणी मिलयोस, हर रगे हर जाई हू।
अंदर बूटी मुश्क मचाया, जां फूलण ते आई हू।
जीवे मुरशिद कामिल बाहू, जैं एह बूटी लाइ हू।"

[इस काफ़ी में गुरु जो बीज दिल की जमीन में डालता है और वह सुगन्धित हो उठती है के बारे में है]

(2)
काफ़ी नम्बर दो पंजाबी भाषा
"अल्ला सही कितोसे जिस दम, चमकया इश्क़ अगोहां हू।
रात दिहां दे ताअ तिखेरे, करे अगोंहा सुहां हू।
अंदर भाई, अंदर बालण, अंदर दे विच धूहां हू।
शाह रग थीं रब्ब नेड़े लदधा, इश्क़ कीतां जद सू हां हू।"

[इस काफ़ी में प्रेम(इश्क़) ही सारे दरवाजे खोलता है जो आत्म साक्षात्कार से परमात्मा से साक्षत्कार तक मिलाता है]

(3)
काफ़ी नम्बर तीन पंजाबी भाषा

"ओ हो नफ़्स असाड़ा बेली, जो नाल असाडे सिद्धा हू।
जो कोई उसदी करे सवारी, नाम अल्ला उस लद्धा हू।
ज़ाहिद आबिद आण निवाए, जिथ टुकड़ा वेखे थिद्धा हू।"

[इस काफ़ी में मन को मनुष्य का मित्र बताया जिसे मना कर या काबू कर सब रास्तों को तय किया जा सकता है सभी मंजिलों को प्राप्त किया जा सकता है। दुसरों की भलाई का रास्ता है फ़क़ीरी की राह माँ के हाथ का हलवा नहीं है किसी की भलाई करना]

(4)
काफ़ी नम्बर चार पंजाबी भाषा
"अंदर हू ते बाहर हू, हर दम नाल जलेन्दा हू।
हू दा दाग मुहब्बत वाला, हर दम पया सडेन्दा हू।
जित्थे हू करे रोशनाई, छोड़ अँधेरा वेंदा हू।
मैं कुरबान तिनां ते बाहू, जो हू सही करेंदा हू।"

[इस काफ़ी में सुलतान बाहू कहते हैं कि हमारे अंदर और बाहर जो कुछ वह परमात्मा का प्रकाश है जो हमें राह दिखाता है उस पर कुरबान होते हुए कहते हैं जो इस हू से उन्हें जोड़ता है यानी फिर गुरु ही को इसका श्रेय देते हैं।]

(5)
काफ़ी नम्बर पांच पंजाबी भाषा
"ईमान सलामत हर कोई मंगे, इश्क़ सलामत कोई हू।
मंगण ईमान शरमावण इश्कों, दिल नूं गैरत होई हू।
जिस मञ्जल नूं इश्क़ पहूँचावे, ईमान खबर न काई हू।
इश्क़ सलामत रक्खीं बाहू, देयाँ ईमान धरोई हू।"

[इस काफ़ी में कहते हैं कि प्रेम(इश्क़) और ईमान में सभी लोगों को जानना होगा की प्रेम का स्थान ऊँचा है]

यह सभी शिक्षाएँ हजरत सुलतान बाहू ने अपनी अब्याते-बाहू में पंजाबी काफ़ी के रूप में लिक्खा है। 
और जानकारी के लिए सम्पर्क करें whatsapp no 9928255032
~पवन राज सिंह

गुरुवार, 21 नवंबर 2019

व्यस्थ जीवन शैली बीमारियों का घर

आजकल की व्यथ जिंदगी में किसी व्यक्ति का शारीरिक रूप से स्वस्थ होना अंसभव होता जा रहा है। मुख्य रूप से पश्चिमी देशों में जहाँ हर दिन नई तकनीक का आविष्कार हो रहा है। यहाँ तक की नई दवाओं को शोध  कर के बनाया जा रहा है जिनसे बिमारी ठीक नहीं होती थोड़े समय के लिए रुक या थम जाती है जैसे हम ट्रैफिक सिग्नल को देखते हैं। बीमार फिर उसी तरह की गलतियां करता है और फिर उसी उलझन में फंस जाता है। किन्तु आयुर्वेद या हिंदुस्तानी आध्यात्म में इसके अनेकों उपाय हैं। जिनमें योग एवं आयुर्वेदिक तथा आध्यात्मिक और मनुष्य जीवन जीने के तरीके बतलाये जाते हैं। इन सभी के साथ परहेज या एक दिनचर्या को भी समझाया जाता है, बीमार अपनी खाने की प्रवृति से इस दुविधा में पड़ा है, या अपनी बिना आराम की ऑफिसियल लाइफ की वजह से बीमार हुआ है यह सब देखना और बीमार को समझाना होता है। मानसिक असन्तुलन भी इसी प्रकार की कई परिस्थितियों से उतपन्न एक बिमारी है। त्रिदोष का सिद्धान्त जिसमें कफ वात और पित्त का शरीर में असन्तुलन भी आजकल बहुत ही ज्यादा हो गया है। व्यक्ति को चाहिए इनकी समानता आवश्यक है।

ज्यादा जानकारी के लिए सम्पर्क करें व्हाट्सएप्प no 919928255032

उपयोगी साधना

शिव शंकर भक्तों के लिए उपयोगी साधना मन्त्र इस प्रकार हैं ।

प्रथम बिंदु

यह इस प्रकार है (वन्दे बोधमयं नित्यं गुरु, शंकर रूपिणम, यमाश्रितो हि वक्रोपि, चन्द्रः सर्वत्र वन्द्यते)

इस श्लोक में भगवान शंकर को गुरु रूप में प्रणाम करके उनकी महिमा बताई है। पूजा उपासना करने के पहले इस को पढ़ लेना चाहिए ताकि पूजा का पूरा फल मिले। अगर पूजा में कोई समस्या आ जाय तो शिव कृपा से वह समाप्त हो जाती है।

द्वितीय बिंदु

यह इस प्रकार है (महामंत्र जोई जपत महेसू , कासी मुकुति हेतु उपदेसू )

जब भी मंत्र जाप करना या सिद्ध करना चाहते हैं तो उसके पहले इसे पढना चाहिए। भगवान शंकर की कृपा से तुरंत ही मंत्र सिद्ध भी होता है और प्रभावशाली/लाभप्रद भी है।

तृतीय बिंदु

यह इस प्रकार है (संभु सहज समरथ भगवाना , एही बिबाह सब विधि कल्याणा)

संतान के विवाह जीवन में समस्या आये तो  इस दोहे का प्रभाव अचूक होता है। प्रतिदिन सुबह भगवान शंकर के समक्ष इसे १०८ बार जाप करें , फिर अपनी सन्तान-पुत्र/पुत्री के सुखद वैवाहिक जीवन की प्रार्थना कर लीजिए।

चतुर्थ बिंदु

यह इस प्रकार है कि (जो तप करे कुमारी तुम्हारी , भावी मेटी सकही त्रिपुरारी )

यदि जीवन में ग्रहों या प्रारब्ध के कारण कुछ भी न हो पा रहा हो तो यह दोहा अत्यधिक लाभप्रद-फलदायी है। इसे चारों वेला कम से कम १०८ बार पढने से किस्मत या भाग्य का योग बदल सकता है, कोई भी कामना उचित न हो वह न करें।

पंचम बिंदु

यह इस प्रकार है (तव सिव ती'सर नयन उघारा, चितवत कामु भयऊ जरि छारा)

यदि मन भटकता है एवं चंचल हो तो यह दोहा फायदा पहुचाने वाला है। काम-काज चिंतन/मनन और काम भाव से परेशान हों उनके लिए यह अधिक प्रभावशाली रहेगा

षष्ठम बिंदु

यह इस प्रकार है (पाणिग्रहण जब कीन्ह महेसा, हिय हरसे तब सकल सुरेसा,, वेद मंत्र मुनिवर उच्चरहीं, जय जय जय संकर सुर करहीं )

यदि विवाह में बाधा आ रही हो तो इस दोहे का जाप अत्यंत लाभदायक है।
सुबह सुबह शंकर-पार्वती जी  के सामने इसका जाप करने से शीघ्र और सुखद विवाह होता है.

सप्तम बिंदु

यह इस प्रकार है (बिस्वनाथ मम नाथ पुरारी, त्रिभुवन महिमा विदित तुम्हारी)

यदि कोई आर्थिक समस्या ज्यादा हो या धंधा-रोजगार की समस्या आये तो इस दोहे का जाप करते रहना उचित होगा।
सुबह एवं रात की अवधि में भगवान शंकर के सामने कम से कम १०८ बार इसका जाप करते रहना चाहिए


शारीरिक परेशानियाँ त्रिदोष सिद्धान्त

आयुर्वेद में ‘त्रिदोष सिद्धान्त’ की विस्तृत व्याख्या हैं, वात्त,पित्त और कफ के शरीर में बढ़ जाने या प्रकुपित होने पर उनको
शांत करने के उपायों का विस्तृत वर्णन हैं। आहार के प्रत्येक द्रव्य के गुण-दोष का सूक्ष्म विश्लेषण हैं, ऋतुचर्या-दिनचर्या आदि के माध्यम में स्वास्थ्य-रक्षक उपायों का सुन्दर विवेचन हैं तथा रोगों से बचने के  व् रोगों की चिरस्थायी चिकित्सा के लिए पथ्य-अपथ्य पालन के उचित मार्ग दर्शन हैं। आयुर्वेद में परहेज-पालन के महत्व को आजकल आधुनिक डाक्टर भी समझने लग गए हैं, और आवश्यक परहेज-पालन पर जोर देने लग गए हैं।

वात, पित्त एवं कफ रोग लक्षण

पित्त रोग लक्षण

पेट फूलना,पेट दर्द, दस्त मरोड, गैस, खट्टी डकारें, ऐसीडिटी, अल्सर, पेशाब जलन, रूक रूक कर बूँद बूँद बार बार पेशाब,
पत्थरी, शीघ्र पतन, स्वप्न्न दोष, लार जैसी धात गिरना, शुक्राणु की कमी, बांझपन, खून जाना, ल्यूकोरिया, गर्भाशय ओवरी में छाले, अण्ड कोष बढ़ना, एलर्जी खुजली शरीर में दाने शीत निकलना कैसा भी सरदर्द मधुमेह से उतपन्न शीघ्रपतन कमजोरी, इन्सुलिन की कमी, पीलिया, खुन की कमी बवासीर,सफेद दाग, माहवारी कम ज्यादा आदि।


वात रोग लक्षण

अस्सी प्रकार के वात, सात प्रकार के बुखार, घुटना कमर जोड़ो में दर्द, सन्धिवात सर्वाइकल स्पोन्डिलायटिस, लकवा, गठिया, हाथ पैर शरीर कांपना, पूरे शरीर मव सूजन कहीं भी दबाने से  गड्ढा हो जाना, लिंग दोष, नामर्दी, बुढापे की कमजोरी, मिर्गी चक्कर, एकांत में रहना।

कफ रोग लक्षण

बार बार सर्दी लगना, खांसी, छींके आना, एलर्जी, नजला, टी०बी०, सीने में दर्द, घबराहट, मृत्यु भय, सांस फूलना, गले में गाँठ, टॉन्सिल, कैसर के लक्षण, थायराइड, ब्लड प्रैशर, बिस्तर में पेशाब करना, शरीर से मुंह से बदबू, चेहरे का कालापन, कान बहना,  शरीर फूल जाना, किडनी लिवर दर्द सूजन, मोटापा, जाघों का आपस में नजदीक आना, गर्भ नली का चोक हो जाना, कमजोर अण्डाणु आदि।

इस तरह के त्रिदोष रोगों के लक्षण हैं

जिनमे व्यक्ति ब्लड प्रेशर, कब्ज़, खुनी-बेखुनी-बवासीर, डायबिटीज़, नामर्द, मोटापा आदि बीमारियों अक्सर परेशान रहते हैं इन सभी परेशानियों के लिए या कोई और परेशानी के लिए मेरे इस नम्बर पर व्हाट्सएप्प से सम्पर्क करें whatsapp 9928255032 पवन राज सिंह

~पवन राज सिंह





















बुधवार, 20 नवंबर 2019

बौद्धिक चिंतन आवश्यक है......

संतान की उत्पत्ति उसका पालन पोषण और उसी संतान के हितार्थ जीवन के अथक प्रयासों का नाम ही माता-पिता या संरक्षक का संघर्ष होता है। आज ही नहीं आदि काल से यह मनुष्य जीवन की मानसिकता में घर कर गया या यूँ सिद्ध किया जाए कि यह गृहस्थ आश्रम का एक सुंदर चित्रण या सिद्धान्तिक नियम है। हर इक परिवार के अपने संघर्ष की कहानियाँ बच्चों के लालन-पालन से लेकर उनके जीवन को सुरक्षित और सुलभ बनाने की गुत्थियों को सुल्झाने के इधर उधर ही घूमती रहती है। एक पिता या संरक्षक के नाते उस व्यक्ति का यह एक महत्वपूर्ण योगदान है जो इस जिम्मेदारी को समझता है कि जीवन में आने वाला हर एक पल मेरे परिवार और बच्चों के सुखद एंव बेहतर रहे और उसके लिए वह अथक प्रयासों को जीवनपर्यन्त करता रहता है। वह कारखाने की इक मशीन की तरह बिना रुके परीस्थितियों से संघर्ष करता हुआ एक नईया के खेवैया की तरह अपनी मझधार में फंसी नईया को किनारे लाने के प्रयास करता है और सफल भी होता है। ऐसा ही कुछ या इससे कहीँ महत्वपूर्तण योगदान घर की स्त्री का होता है, जो स्वयं के घर को त्याग कर इक ऐसे घर में जहाँ कोई उसका नहीं था या नहीं है से शुरू करती है से शुरू करती है अपने जीवन चक्र को या गृहस्थ जीवन को और एक के बाद एक जीवन के संघर्षों से गुजरती हुई,  कभी पत्नी कभी माँ और कभी बहू और कभी सास जैसे चरित्रों को निभाती रहती है। ऐसे कई और उदाहरण हैं जिनसे माता-पिता के योगदान को झुटलाया नहीं जा सकता किन्तु वर्तमान में जिस प्रकार आधुनिक जागृति ने समाज की परिपाठी को परिवर्तित किया है। इस आधुनिकीकरण में समाज को वास्तविक रूप धूमिल होता नजर आ रहा है। कई उदाहरण हर दिन सुनने को मिल रहे हैं। इस तरह बच्चों ने भागकर विवाह कर लिया इस तरह ऋण लेकर सन्तान ने फांसी लगा ली और सारी जिम्मेदारी फिर से बुजुर्ग माता-पिता पर आ गई। कुछ माता पिता अपने बच्चों को विदेशी शिक्षा हेतु भेजते हैं जहाँ बच्चे वहीँ अपना जीवन साथी चुनकर वापस लौटते ही नहीं, माँ बाप उन बच्चों के बिना जीने को विवश हो जाते हैं। कुछ बच्चे बड़े होकर माता- पिता की सेवा में मुँह चुराते हैं और की घिनोने उदाहरण भी आजकल के जीवन में समाचार पत्रों या टीवी चैनलों द्वारा पढ़ने या देखने को मिल रहे हैं।
सभी को मिलकर इसके प्रति वैचारिक एवम्  बौद्धिक  चरचा की आवश्यकता है। आप भी इस पर विचारिये यह आधुनिक समाज हमें किस ओर ले जा रहा है।.......
~पवन राज सिंह

अभी अभी


मुझे इक आवाज आ रही है अभी
तुम्हारी ही याद आ रही है अभी

देखता हूँ जिसे ख़्वाब में गाहे-ब-गाहे
वो तमन्ना ही आके सुला रही है अभी

जख़्म दिल के जो हरे हो गये मेरे
वो पास आके सहला रही है अभी

नर्म बिस्तर पर बैठी है आके मेरे पास
मेरी जिन्दगी मुझसे शर्मा रही है अभी

कर्ज़ मौत का जो बढ़ गया मुझ पर
साँसे रुक रुक के चूका रही है अभी

जो सबा रात में सुकन थी दिल का
वो ही घरोंदा जला रही है अभी

उलझन में घिरा है 'राज' तू यहां आकर
तेरी सीरत राज़ सुलझा रही है अभी
पवन राज सिंह

मंगलवार, 19 नवंबर 2019

खोजिए उसे जो आपकी जबान बोलता है

हर इंसान को अपनी अपनी खुशियों ने सम्भाल रक्खा है, अपनी अपनी मजबूरियों ने परेशान भी कर रक्खा है। केवल आत्म सन्तुष्टि और मन की व्याकुलता जैसे दो चेहरे हैं जो अपनी अपनी और उम्र भर इंसान को खिंचते रहते हैं। किसी इंसान के अंदर रूहानियत घर कर गई है तो उसे बुरे वक्त में एक सब्र का सहारा मिल जाता है जिसे आत्म सन्तुष्टि की राह पर चलने का कोई एक मकाम कहा जा सकता है। आप यदि इसमें आगे की और बढ़ना चाहें तो आगे और मंजिलें आती हैं जो मन की व्याकुलता को समूल नष्ट कर देती है। या यूँ कहें की नफ़सानियत के दांव-पेंचों से इंसान को बाहर ले आती है। बात दुनियावी ख्वाहिशों में घिरने की हो या मन की चंचल गति के अनुसार अपने आपको भगाए रखने की हो दोनों ही में व्यक्ति अपनी रूहानियत अपनी आत्मीयता को निचोड्ता रहता है। कुछ ऐसे के पीछे दोडता रहता है जो कुछ पल का कुछ दिन कुछ महीनों या कुछ सालों का है ये कुछ 10 50 100 1000 भी हो सकता है पर वह हजार वर्ष का भी दुनियावी मजा या राजसी विलास उल्टी गिनती गिनता हुआ अपने मकाम शून्य की और बढ़ता जा रहा है, और उसे इक रोज समाप्त तो होना ही है । अब बात उस अनन्त की की-जाए जो हमसे पहले भी था और आगे भी रहेगा, जी हाँ शून्य से शून्य की यह यात्रा अनन्त है इसे अज़ल से अबद तक का सफर भी कहा जाता है। इसमें कंप्लीट सरेंडर करना पड़ता है या तो किसी दिव्य पुरष के आगे जिसे गुरु कहा जाता है। या उसे मुर्शिद कहा जाता है बात एक ही है। ये सब्र का सफर ऐसे ही नहीं शुरु हो जाता इसे शुरू करने और कराने में एक गुरु की आवश्यकता होती है और उसे खोजना होता है या वो खुद रांझा बनकर अपनी हीर को खोज लेता है  पर बात यहाँ उसके इशारों पर नाचने जैसी है बाबा बुल्लेशाह की तरह या सन्त नामदेव की तरह जो कुत्ते को परमशक्ति का साक्षात्कार मान बैठता है। क्योंकि हमारी आँखें तो मूसा की आँखों जितनी भी काबिल नहीं हैं जब वो ही उस जल्वे को न देख सका तो हम उसे कैसे देख सकते हैं। हमें अपने चारों और ही किसी खोजी को खोजना होगा जो हमारी ही तरह का हमारी ही तरह रहने वाला हमारी ही तरह बोलने वाला हो जो हमें हमारी ही जबान में हमारी जरूरतों के हिसाब से हमें सिखा सके। मेरी राय में अपनी खोज जारी रखो उसकी जो तुम्हें वो अदा सिखा सके जो औरों को दीवानापन लगे और उस परमशक्ति को सम्पूर्ण शरणागति यानी कमप्लीट सरेंडर लगे फिर सब्र सन्तोष और आनन्द की अनुभूति या एहसास अपने आप होगा।
बहुत कुछ बताने को है, पर गुब्बारे में आज के लिए इतनी ही हवा भरी जाए नहीं तो वह फट भी सकता है। इसे अगर तीन बार पढ़ लिया जाए तो कोई बात ऐसी हो सकती है जो आपके काम की हो। हम हलवाई हैं जलेबी की तरह लिखते हैं जो रस चखना जानता है वो उसे पा लेगा।
आप और आपका परिवार खुश रहे इतना कुछ पढ़ने के लिए तहे-दिल से शुक्रिया

~पवन राज सिंह

सोमवार, 18 नवंबर 2019

आवाज़ की कहानी

आवाज की कहानियाँ भी बड़ी अजीब होती हैं, कई कहानियाँ आवाज़ की कानों में सुनाई पड़ती हैं, कई कहानियाँ ऐसी होती हैं जिनके बोझ तले जहन बेचारा दबा रहता है। कुछ कहानियाँ दिल ही में पलती हैं दिल ही में बड़ी होती हैं और मर भी जाती हैं, कभी कभी दिल में कोई ज्वार भाटा उफान मारता है तड़प के चाँद के इशारों पर तब जाकर कोई एक कहानी जिंदगी के किनारे आ लगती है। सभी लोगों के साथ अक्सर ऐसा होता है कुछ लोग इसे अपनी मेहनत से पा लेते हैं कुछ ऐसे होते हैं जिन्हें किसी का सहारा मिल जाता है। कुछ ऐसे भी हैं जिन्हें न मेहनत आती है न सहारा ही मिलता ऐसे लोगों की दबी-कुचली सी कहानियों का बोझ वो अपने जहन के माथे पर डाल देते हैं। फिर भी आवाजें आवाजें हैं कानों से हों पिछले जमाने से हों या जहन के काँधों पे लदी हों। उन सभी आवाजों की कहानियों को नकारो नहीं उनको पूरा होने या न होने की जो ख़ास वजहें उन्हें तलाशो और अपने आप से वादा करो की अब कोई कहानी मेरी जिंदगी के किनारे आ लगेगी तो उसे अंजाम तक पहुँचना मेरा फ़र्ज़ है।
~पवन राज सिंह

गुलज़ार तुम्हीं हो।

हर्फों से हर्फों के रँग चुराकर
लफ़्ज़ों की पत्तियों को बनाना
पत्तियों को अल्फ़ाज़ में बिठाना
अल्फाजों को अश्आर में पिरोकर
गज़ल गीत कविता नज्म के हार बनाना
ये सिर्फ तुम्हें आता है गुलज़ार
तुम्हीं तो हो हर महफ़िल के दिल में हो
तुम्हीं से मुहब्बतों में रँग आता है
अपनी कलम की सियाही से तुम
सावन की रिमझिम फुँहारें गिराते हो
तुम्हीं रूठे हुए दिलबर को पल में मनाते हो
हां, बस तुम ही हो गुलज़ार जो
हर दिल में समाते हो
हर सफ़े पर अपनी छाप छोड़ जाते हो
तुम्हारी आवाज़ ही पहचान है
तुम्हारा अंदाज ही तुम्हारी पहचान है
हर सितारा तुम्हें अपने नूर में ढूंढता है
जो किस्मत वाला हो उसी को तुम मिलते हो
हां, बस तुम ही हो गुलज़ार
तुम ही हो कुछ भी नहीं के सब कुछ
तुम ही हो..............गुलज़ार तुम ही हो
~पवन राज सिंह

कार्टून नेटवर्क

कभी कभी कार्टून नेटवर्क की ट्रेनिंग भी जरूरी है
क्योंकि जो आँखों के आगे है वो पर्दा, जो हो रहा है। सब तरफ कार्टून नेटवर्क ही है, दरअसल हकीकत कुछ और है जिसकी जानकारी किसी पहुँचे हुए सन्त से मिलती है,अपने अंदर की किताब के पन्ने पलटने से है। बाहर जो है वह केवल शोर है।
~पवन राज सिंह

ज़ाम

चल उठा ज़ाम बहक जरा फिर देख होता है क्या
सिखायेंगे तुझे सुरूर क्या खुमार क्या होश क्या
~पवन राज सिंह

क्यों होता है ऐसा क्यों होता है?


कभी कभी उम्र के उन अंधेरों से जिंदगी को गुजरना होता है, जहाँ न दोस्तों की लालटेन जलती है न महफ़िलों की शमा जलती है। चंद सवालात के दरमियाँ जहन कुछ न कुछ टटोलता रहता है। उम्मीदों की छत पर रह रहे पंछी बिना पर ही परवाज़ करने को बेताब रहते हैं, पर मायूसियों की तपिश और आँधियाँ उन्हें उड़ने से रोकती हैं। क्यों होता है अक्सर ऐसा क्यों होता है?
~पवन राज सिंह

कलाम 19

 दर्द-ए-इश्क़ दिल को दुखाता है बहुत विसाल-ए-यार अब याद आता है बहुत ज़ब्त से काम ले अ' रिंद-ए-खराब अब मयखाने में दौर-ए-ज़ाम आता है बहुत साक़ी...