आजकल की व्यथ जिंदगी में किसी व्यक्ति का शारीरिक रूप से स्वस्थ होना अंसभव होता जा रहा है। मुख्य रूप से पश्चिमी देशों में जहाँ हर दिन नई तकनीक का आविष्कार हो रहा है। यहाँ तक की नई दवाओं को शोध कर के बनाया जा रहा है जिनसे बिमारी ठीक नहीं होती थोड़े समय के लिए रुक या थम जाती है जैसे हम ट्रैफिक सिग्नल को देखते हैं। बीमार फिर उसी तरह की गलतियां करता है और फिर उसी उलझन में फंस जाता है। किन्तु आयुर्वेद या हिंदुस्तानी आध्यात्म में इसके अनेकों उपाय हैं। जिनमें योग एवं आयुर्वेदिक तथा आध्यात्मिक और मनुष्य जीवन जीने के तरीके बतलाये जाते हैं। इन सभी के साथ परहेज या एक दिनचर्या को भी समझाया जाता है, बीमार अपनी खाने की प्रवृति से इस दुविधा में पड़ा है, या अपनी बिना आराम की ऑफिसियल लाइफ की वजह से बीमार हुआ है यह सब देखना और बीमार को समझाना होता है। मानसिक असन्तुलन भी इसी प्रकार की कई परिस्थितियों से उतपन्न एक बिमारी है। त्रिदोष का सिद्धान्त जिसमें कफ वात और पित्त का शरीर में असन्तुलन भी आजकल बहुत ही ज्यादा हो गया है। व्यक्ति को चाहिए इनकी समानता आवश्यक है।
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