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सोमवार, 18 नवंबर 2019

गुलज़ार तुम्हीं हो।

हर्फों से हर्फों के रँग चुराकर
लफ़्ज़ों की पत्तियों को बनाना
पत्तियों को अल्फ़ाज़ में बिठाना
अल्फाजों को अश्आर में पिरोकर
गज़ल गीत कविता नज्म के हार बनाना
ये सिर्फ तुम्हें आता है गुलज़ार
तुम्हीं तो हो हर महफ़िल के दिल में हो
तुम्हीं से मुहब्बतों में रँग आता है
अपनी कलम की सियाही से तुम
सावन की रिमझिम फुँहारें गिराते हो
तुम्हीं रूठे हुए दिलबर को पल में मनाते हो
हां, बस तुम ही हो गुलज़ार जो
हर दिल में समाते हो
हर सफ़े पर अपनी छाप छोड़ जाते हो
तुम्हारी आवाज़ ही पहचान है
तुम्हारा अंदाज ही तुम्हारी पहचान है
हर सितारा तुम्हें अपने नूर में ढूंढता है
जो किस्मत वाला हो उसी को तुम मिलते हो
हां, बस तुम ही हो गुलज़ार
तुम ही हो कुछ भी नहीं के सब कुछ
तुम ही हो..............गुलज़ार तुम ही हो
~पवन राज सिंह

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