संतान की उत्पत्ति उसका पालन पोषण और उसी संतान के हितार्थ जीवन के अथक प्रयासों का नाम ही माता-पिता या संरक्षक का संघर्ष होता है। आज ही नहीं आदि काल से यह मनुष्य जीवन की मानसिकता में घर कर गया या यूँ सिद्ध किया जाए कि यह गृहस्थ आश्रम का एक सुंदर चित्रण या सिद्धान्तिक नियम है। हर इक परिवार के अपने संघर्ष की कहानियाँ बच्चों के लालन-पालन से लेकर उनके जीवन को सुरक्षित और सुलभ बनाने की गुत्थियों को सुल्झाने के इधर उधर ही घूमती रहती है। एक पिता या संरक्षक के नाते उस व्यक्ति का यह एक महत्वपूर्ण योगदान है जो इस जिम्मेदारी को समझता है कि जीवन में आने वाला हर एक पल मेरे परिवार और बच्चों के सुखद एंव बेहतर रहे और उसके लिए वह अथक प्रयासों को जीवनपर्यन्त करता रहता है। वह कारखाने की इक मशीन की तरह बिना रुके परीस्थितियों से संघर्ष करता हुआ एक नईया के खेवैया की तरह अपनी मझधार में फंसी नईया को किनारे लाने के प्रयास करता है और सफल भी होता है। ऐसा ही कुछ या इससे कहीँ महत्वपूर्तण योगदान घर की स्त्री का होता है, जो स्वयं के घर को त्याग कर इक ऐसे घर में जहाँ कोई उसका नहीं था या नहीं है से शुरू करती है से शुरू करती है अपने जीवन चक्र को या गृहस्थ जीवन को और एक के बाद एक जीवन के संघर्षों से गुजरती हुई, कभी पत्नी कभी माँ और कभी बहू और कभी सास जैसे चरित्रों को निभाती रहती है। ऐसे कई और उदाहरण हैं जिनसे माता-पिता के योगदान को झुटलाया नहीं जा सकता किन्तु वर्तमान में जिस प्रकार आधुनिक जागृति ने समाज की परिपाठी को परिवर्तित किया है। इस आधुनिकीकरण में समाज को वास्तविक रूप धूमिल होता नजर आ रहा है। कई उदाहरण हर दिन सुनने को मिल रहे हैं। इस तरह बच्चों ने भागकर विवाह कर लिया इस तरह ऋण लेकर सन्तान ने फांसी लगा ली और सारी जिम्मेदारी फिर से बुजुर्ग माता-पिता पर आ गई। कुछ माता पिता अपने बच्चों को विदेशी शिक्षा हेतु भेजते हैं जहाँ बच्चे वहीँ अपना जीवन साथी चुनकर वापस लौटते ही नहीं, माँ बाप उन बच्चों के बिना जीने को विवश हो जाते हैं। कुछ बच्चे बड़े होकर माता- पिता की सेवा में मुँह चुराते हैं और की घिनोने उदाहरण भी आजकल के जीवन में समाचार पत्रों या टीवी चैनलों द्वारा पढ़ने या देखने को मिल रहे हैं।
सभी को मिलकर इसके प्रति वैचारिक एवम् बौद्धिक चरचा की आवश्यकता है। आप भी इस पर विचारिये यह आधुनिक समाज हमें किस ओर ले जा रहा है।.......
~पवन राज सिंह
सभी को मिलकर इसके प्रति वैचारिक एवम् बौद्धिक चरचा की आवश्यकता है। आप भी इस पर विचारिये यह आधुनिक समाज हमें किस ओर ले जा रहा है।.......
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