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शुक्रवार, 22 नवंबर 2019

सुलतान बाहू जीवन परिचय और शिक्षाएँ


सुल्तान बाहू जन्म 1628/29 में हुआ आप एक बहुत ही पहुँचे हुए सूफ़ी मत के सन्त हुए, उनके पिता का नाम बायजीद मुहम्मद था शाहजहाँ के काल में सुलतान बाहू के पिता मुलतान में रहते (पाकिस्तान अब) थे। इसी शहर मुलतान में सूफ़ी सन्त सुल्तान बाहू का जन्म बायजीद मुहम्मद के घर में हुआ। सुल्तान बाहू को उनके मुरीदों और चाहने वालों ने उनको सुल्तान-उल-आरिफ़िन की उपाधि से सम्मान दिया जिसका मतलब फकीरों के बादशाह से लगाया जा सकता है।  आपका जीवन काल 1630 से 1691 तक लगभग 63 वर्ष की उम्र का अंदाजा लगाया जाता है। आपकी माँ का "रास्ती" था धार्मिक विचारों वाली शांत स्वभाव वाली स्त्री के रूप नेक जीवन जीने वाली स्त्री के रूप में बिताया।
सुलतान बाहू की माता ने उनका नाम (बाहू) रक्खा जिसका मतलब आध्यात्मिक दृष्टि से अरबी भाषा में बा' के अर्थ में (साथ में)और हू' के मायने में "परमात्मा (मालिक)" होता है। यानी वह व्यक्ति जो मालिक से मिला हुआ है या उसके साथ है मालिक से लगाया जाता है।
सुल्तान बाहू की शिक्षा इन निम्न लिखित पंजाबी काफ़ी (रुबाई) में है जिनसे व्यक्ति को बहुत ही आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होता है। गुरु (मुर्शिद) और शिष्य(मुरीद) की परम्परा के मार्ग से होते हुए व्यक्ति परमात्मा तक किस तरह ख़ुद को मिला सकता है। आइये जानते हैं;-

(1)
(काफ़ी नम्बर एक पंजाबी भाषा)

'अलिफ़ अल्ला चम्बे दी बूटी, मुरशिद मन विच लाइ हू।
नफ़ी इस्बात दा पाणी मिलयोस, हर रगे हर जाई हू।
अंदर बूटी मुश्क मचाया, जां फूलण ते आई हू।
जीवे मुरशिद कामिल बाहू, जैं एह बूटी लाइ हू।"

[इस काफ़ी में गुरु जो बीज दिल की जमीन में डालता है और वह सुगन्धित हो उठती है के बारे में है]

(2)
काफ़ी नम्बर दो पंजाबी भाषा
"अल्ला सही कितोसे जिस दम, चमकया इश्क़ अगोहां हू।
रात दिहां दे ताअ तिखेरे, करे अगोंहा सुहां हू।
अंदर भाई, अंदर बालण, अंदर दे विच धूहां हू।
शाह रग थीं रब्ब नेड़े लदधा, इश्क़ कीतां जद सू हां हू।"

[इस काफ़ी में प्रेम(इश्क़) ही सारे दरवाजे खोलता है जो आत्म साक्षात्कार से परमात्मा से साक्षत्कार तक मिलाता है]

(3)
काफ़ी नम्बर तीन पंजाबी भाषा

"ओ हो नफ़्स असाड़ा बेली, जो नाल असाडे सिद्धा हू।
जो कोई उसदी करे सवारी, नाम अल्ला उस लद्धा हू।
ज़ाहिद आबिद आण निवाए, जिथ टुकड़ा वेखे थिद्धा हू।"

[इस काफ़ी में मन को मनुष्य का मित्र बताया जिसे मना कर या काबू कर सब रास्तों को तय किया जा सकता है सभी मंजिलों को प्राप्त किया जा सकता है। दुसरों की भलाई का रास्ता है फ़क़ीरी की राह माँ के हाथ का हलवा नहीं है किसी की भलाई करना]

(4)
काफ़ी नम्बर चार पंजाबी भाषा
"अंदर हू ते बाहर हू, हर दम नाल जलेन्दा हू।
हू दा दाग मुहब्बत वाला, हर दम पया सडेन्दा हू।
जित्थे हू करे रोशनाई, छोड़ अँधेरा वेंदा हू।
मैं कुरबान तिनां ते बाहू, जो हू सही करेंदा हू।"

[इस काफ़ी में सुलतान बाहू कहते हैं कि हमारे अंदर और बाहर जो कुछ वह परमात्मा का प्रकाश है जो हमें राह दिखाता है उस पर कुरबान होते हुए कहते हैं जो इस हू से उन्हें जोड़ता है यानी फिर गुरु ही को इसका श्रेय देते हैं।]

(5)
काफ़ी नम्बर पांच पंजाबी भाषा
"ईमान सलामत हर कोई मंगे, इश्क़ सलामत कोई हू।
मंगण ईमान शरमावण इश्कों, दिल नूं गैरत होई हू।
जिस मञ्जल नूं इश्क़ पहूँचावे, ईमान खबर न काई हू।
इश्क़ सलामत रक्खीं बाहू, देयाँ ईमान धरोई हू।"

[इस काफ़ी में कहते हैं कि प्रेम(इश्क़) और ईमान में सभी लोगों को जानना होगा की प्रेम का स्थान ऊँचा है]

यह सभी शिक्षाएँ हजरत सुलतान बाहू ने अपनी अब्याते-बाहू में पंजाबी काफ़ी के रूप में लिक्खा है। 
और जानकारी के लिए सम्पर्क करें whatsapp no 9928255032
~पवन राज सिंह

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