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बुधवार, 20 नवंबर 2019

अभी अभी


मुझे इक आवाज आ रही है अभी
तुम्हारी ही याद आ रही है अभी

देखता हूँ जिसे ख़्वाब में गाहे-ब-गाहे
वो तमन्ना ही आके सुला रही है अभी

जख़्म दिल के जो हरे हो गये मेरे
वो पास आके सहला रही है अभी

नर्म बिस्तर पर बैठी है आके मेरे पास
मेरी जिन्दगी मुझसे शर्मा रही है अभी

कर्ज़ मौत का जो बढ़ गया मुझ पर
साँसे रुक रुक के चूका रही है अभी

जो सबा रात में सुकन थी दिल का
वो ही घरोंदा जला रही है अभी

उलझन में घिरा है 'राज' तू यहां आकर
तेरी सीरत राज़ सुलझा रही है अभी
पवन राज सिंह

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