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गुरुवार, 21 जनवरी 2021

पुनः विचार करें

 जो जीवन की विधा तुमने सीखी थी उस शैली से अन्य कई शैलियाँ हैं, अपने ही ज्ञान को सब कुछ मान लेना ही श्रेष्ठता नहीं है। स्वयं की कल्पना ही श्रेष्ठतम नहीं है उसमें आगे आकर कोई अड़चन आ सकती है।श्रष्टि के प्रारम्भ में हर उस लावा के पिंड का यह संसार है जो ज्वालामुखी के मुख से निकल रहा है। किसी की सरलता किसी का अपनापन किसी का प्रेम ये सब मनुष्य के अलग रूप हैं जो उन्हें भगवान से मिले हैं। तुम्हारा तेज मस्तिष्क तुम्हें अहंकार के नजदीक ले जा सकता है इसलिए उस पाप से बचने के लिए इस गुण से लिप्त न रहें। क्योंकि संसार चलाने वाले की नजर में जो नजारा है उसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते। तो पुनः विचार करें कहाँ ये त्रुटि हम कर रहे हैं तो प्रयास करें ये हमसे आगे न हो.....
.~पवन राज सिंह

बुधवार, 20 जनवरी 2021

अभ्यास कीजिए समझिए नहीं.....

 मनुष्य जन्म से ही किसी न किसी क्रिया को कर  रहा है। कोई जीव यह माने की केवल हाथ पैर का चलना ही क्रिया है नहीं यहां तक की देखना, सुनना, मनन करना बोलना आदि सभी क्रियाएँ हैं। दो क्रियाओं के मिलन को योग(जमा) तो कहते ही हैं पर इसमें आध्यात्मिक रूप में भी मिलन होता है जिसे आत्मा का ज्ञान से योग होता है। ज्ञान अनुभव का नाम है जो मन बुद्धि अहंकार को अनुभव होता है पर योगिक क्रिया में कोई व्यक्ति उसे समझने का प्रयास करता है तो विफल हो जाता है। उसके किन्तु परन्तु उसे रोकते टोकते हैं। यह (योग) निरन्तर प्रयास की एक कड़ी है जो व्यक्ति कड़ी से कड़ी मिलाता जाएगा वह एक दिन कोई चेन बना ही लेगा। अभ्यास करिए अनुभव कीजिए समझिए नहीं बस करते रहिए बनत बनत बनजाई.....~पवन राज सिंह

मंगलवार, 19 जनवरी 2021

शरणागति ही श्रेष्ठ है

 हम जो कह रहे हैं वह परम् शरणागति की ओर तुम्हें ले जाएगी। यही मार्ग मुक्ति का है बाकी सभी मार्गों में आप जाने क्या क्या प्राप्त कर लेंगे किन्तु यह complete surrender ही मनुष्य को गन्तव्य तक पहुंचाएगा। अब यहां जो दिक्कत है वह यह की कुछ लोगों की तो भौतिकता से आँख ही नहीं खुलती और कुछ ने स्वयं को ही बुद्धिमान जानकर तर्क करने की अड़चन पैदा कर रक्खी है। यह तर्क शक्ति अपने साथ में कुछ कुत्तों को पाले रखती है हर किसी पर यह अपने कुत्ते छोड़ देती क्या,क्यों,कैसे और कहाँ जो उनके असंख्य सवालों का जवाब दे उसके बाद तर्क को भरोसा आएगा पर उसके भरोसे का क्या भरोसा। वह तो खुद भटका है वह कैसे जान पाएगा। जो लकीर खेंची है उसी पर चलने का प्रयास करें चलती रेल में उतरने से गन्तव्य प्राप्त नहीं होगा हर कहीं न उतरें अपने अंदर डूबे रहें क्या पता आप स्वयं ही इस भवसागर को पि जाएँ......~पवन राज सिंह

सोमवार, 18 जनवरी 2021

आत्म-मिलन यानी साक्षात्कार

 कई कहानियों कई किरदारों कई रूप रँग में परमात्मा हमें अपनी कलाओं से अपनी और आकर्षित भी करता है, प्रेरित भी करता है, कभी रोगी की कथा कभी दरिद्र की कथा कभी किसी राजमहल की कहानी में वो है। हर और वही है तुम भी वही हो मैं भी वही हूँ। जब तक ये साँसों का कारोबार चालू है, हमें अपने आत्म-मिलन के साक्षत्कार के लिए प्रयासरत रहना चाहिए, जहाँ ये साक्षात्कार का पल गुजरा उसी स्थान को कुरुक्षेत्र के मध्य दो सेनाओं से घिरे हुए स्वयं को पाओगे और जो तुम्हें तुम्हारे सामने प्रवचन दे रहा होगा वही परमात्मा है। ये वही जगह है जहाँ जीसस प्रवचन देते हैं अपने अनुयायिओं को ये वही तूर का पहाड़ है जहाँ मूसा को परमात्मा ने अपनी ज्योति भर दिखाई और उससे बात की ये वही जगह जिसे गार-ए-हीरा कहते हैं जहाँ जिब्रील ने मुहम्मद साहब को ज्ञान सिखाया। स्वप्न्न से समाधि की यह यात्रा तुम्हारे ध्यान से शुरू होती है, इसमें नाद को सुनना बाद की बात है पहले खर्राटों से काम चलाना होता है, मिलन ही तो जरूरी है हम जो दो समझ रहे हैं यथार्थ में एक ही है बस आभास की कमी है। उसका मिलन ही जागृति है यह क्षण ज्ञान के चक्षुओं को खोल देता है। किसी भी कहानी को प्रेरणा का केंद्र मानते हुए उस किरदार की नकल ही करते रहो तुम्हारा कल्याण जल्द ही होगा~पवन राज सिंह

रविवार, 17 जनवरी 2021

सत्य या झूँठ

 सत्य की सुई उठाने का विचार ही माथे पर पसीना ला देता है किन्तु झूँठ के गठ्ठर उठाने में आदमी हिचकता नहीं है। हम यह जानते हुए की पाप कर्म हमें और हमारे धर्म (सञ्चित पूण्य कर्म फल) को हानि पहुंचाएगा फिर भी समय काल परिस्थित वश हम इस पाप कर्म की प्रक्रिया को चालु रखते हैं। कुछ चरित्र ऐसे होते हैं जो कटुता रखते हैं किन्तु बनते मीठे हैं कुछ ऐसे होते हैं जो मौज में रहते हैं उन्हें समझने में भूल होती है, उनको देखते ही हम दूर सरक जाते हैं किन्तु ऐसे लोग काम के होते हैं खरा खरा बोलने वाले ऐसे लोग भले होते हैं। सत्य और झूँठ की भी ऐसी ही कहानी है एक मीठा लगता है बोलने में एक खरी खरी कहता इसलिए उससे हम किनारा करते हैं। झूँठ के तो कई सर होते हैं वो किसी भी जगह से अल्प काल के लिए octopus की तरह आपको बचा सकता है। सत्य निहत्था है उसकी चाल भी पियादे की तरह सीधी है वह झूँठ के घोड़े की तरह टेढ़ी चाल चलना नहीं जानता। सत्य का उपासक सदैव जीवन में दुःख और पीड़ा ही भुगतता है, किन्तु जब न्याय के देवता से साक्षात्कार होगा तो यह सत्य एक सत्य के बदले लाखों  झूँठ के फन्दों से लिप्त पापों को काटेगा और वहां यह सत्य संख्या में कम होगा किन्तु इसका प्रतिफल हमें लाखों गुणा अधिक प्राप्त होगा। यहां यह सत्य एक सुखी बासी रोटी के निवाले जैसा प्रतीत हो रहा है किन्तु न्याय के देवता के आगे यह वह राजसी भोजन से भी अनमोल होगा तो फैसला आपको करना होगा, सत्य के साथी बनोगे या झूँठ के व्यापारी  .....

 ~पवन राज सिंह

शनिवार, 16 जनवरी 2021

दिव्यता कैसे प्राप्त हो

 आत्मा और परमात्मा के मध्य एक व्यक्ति और है जिसने आत्मा होते हुए परमात्मा से साक्षात्कार किया है, उसे दिव्य आत्मा कहते हैं उस दिव्य आत्मा को एक पुलिया का काम करना आता है और बड़ी सहजता से वह उस कार्य को करता है। आत्मा को परमात्मा से जोड़ देता है। तो यहां आत्मा परमात्मा और दिव्य आत्मा तीन हो गए। दिव्य आत्मा कभी आत्मा था पर वह भी किसी दिव्य आत्मा के सान्निध्य में रहकर दिव्य आत्मा हुआ। यानी शिष्य था जो अब गुरु है और जो अब शिष्य है या शिष्य बनेगा वह बिलकुल सहजता से धीरे धीरे एक दिन गुरु बन जाएगा। यह निरन्तर चलने वाला प्रवाह है। 

~पवन राज सिंह

शुक्रवार, 15 जनवरी 2021

शक्ति को मन के समन्दर में न बहायें

 आपके शरीर में जो शक्ति प्राण बनके दौड़ रही है। उस शक्ति में जीवन का वृक्ष अपने भीतर से पत्तियां फूल और फल खिला रहा है। इस शक्ति में कुछ और भी गूढ़ शक्तियां हैं जो आपातकाल के समय के लिए इसी शरीर के अंदर कहीं रक्खी हैं इन जीवनदायी शक्तियों का मनुष्य भौतिकता में बहकर ख़ात्मा न कर दे तो ऋषियों ने कहा जीव को चाहिए की इस शक्ति को मन के समन्दर में अकेला न छोड़ें, प्रयास यह रहे की हमें शक्ति का सृजन करना है न की शक्ति को समाप्त करना है। कभी आँख कुछ कहती है कभी नाक कुछ कहता है कभी कान कुछ कहता है सभी रसेंद्रियां अपनी अपनी पूर्ति के लिए इस शक्ति को खत्म कर देंगी। आप शक्ति को सृजनात्मक कार्यों में ही लगायें। मरना तो है ही एक दिन यह जानकर शक्ति को न मारें मन की इच्छा को मारें यानी उस पर भी शने शने काबू पाया जाए।

~पवन राज सिंह

कलाम 19

 दर्द-ए-इश्क़ दिल को दुखाता है बहुत विसाल-ए-यार अब याद आता है बहुत ज़ब्त से काम ले अ' रिंद-ए-खराब अब मयखाने में दौर-ए-ज़ाम आता है बहुत साक़ी...