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रविवार, 31 जनवरी 2021

समय सिद्धांत पर ध्यान दें

 शीघ्रता, सटीकता और देरी समय की मापनी में इनका महत्व है, शुभ कर्म में शीघ्रता जरूरी है, ऐसे पलों को खोना नहीं जितना जल्दी हो सके समय से पहले ही करें। जहाँ प्रतिद्वन्द हो वहां सटिकता आवश्यक है जैसे शतरंज ही की चाल है, यह competition है। यहां समय की सटिकता आवश्यक है ऐसे कई विकट मोड़ आ जाते हैं जीवन में चाहे वह कार्यक्षेत्र हो या कोई और समय की जागरूकता जरूरी है। कभी कभी मानव दुर्घटनाओं में घिर जाता है अपनी तेजी का उसे विचार नहीं रहता सामने घटित होने वाला दृश्य उसे दिखाई नहीं देता उससे पहले घटना घट जाती है। मानव की गति ऐसे वक्त में यानी संघर्ष के दौर में शिथिल रखनी होती है जैसे गति सीमा को जांचना और चलना उसके अनुसार या उससे भी कम ये समझ आगे काम आती है....~पवन राज सिंह

#शिक्षा #बात #सीख #जिंदगी #गुरु #उपदेश #समझ #समय #काल

अनुभव महसुसियत ही जीवन है

 शूरू(ब्रह्माण्ड का उदय) और अंत (महाप्रलय)के मध्य जो जीवन की रगड़न है(क्रिया) वही (बोध)महसुसियत है। उसके पहले न भूख थी न तृप्ति न उसके पश्चात ही कुछ है या रहेगा। जो कुछ घटित है उसके मध्य परमात्म तत्व है। परम् सत्ता जिसे कहते हैं उसके पेट के दो हिस्से हैं अन्धकार और प्रकाश, वे ही दो हिस्से स्वर्ग या नर्क कहलाते हैं जो भी जीव, जो भी आत्मा,जैसा महसूस करे उसके लिए वो वही बन जाता है। भूख भी वही है और भोजन उपरान्त तृप्ति भी वही है। पर जो भूख और तृप्ति के मध्य की गई क्रिया है वही भोजन करना है जीवन की महसुसियत है जिसके पूर्व एक आभास है जिसके बाद में एक आभास है। अमावस से पुनम और पूनम से अमावस तक उजाला अँधेरे को खाता है या अँधेरा उजाले को इनका मध्य अंत और आरम्भ कहाँ है और क्या है....~पवन राज सिंह

#शिक्षा #बात #सीख #जिंदगी #गुरु #उपदेश #समझ #महसूस #अनुभव 

शुक्रवार, 29 जनवरी 2021

हमारी प्रार्थना स्वीकार हो कैसे

 परेशान हैं सुनता ही नहीं परमेश्वर ये प्रश्न है ? हमारी प्रार्थना उस परमेश्वर तक कैसे नहीं जाती है, वो अपने श्रृंगार से रीझता है तो हम उसका श्रृंगार नित-प्रति करें,वो भोग से रीझता है तो हम उसको भोजन परोसें, वो सुंदरता से रीझता है तो उसके सामने सुंदर होकर खड़े हो जाएँ। किन्तु होता इसके बिलकुल विपरीत है धनी से पहले वह दरिद्र की सुनता है। भोजन को छोड़ वह भूखों के पास पहले पहुंचता है। फ़टे हालों के हाल जानने के लिए वह खुद फ़टे हाल उनसे मिलने जाता है। तो ऐसा क्या है दरिद्र निर्धन और फ़टेहालों के पास जो (उसको)परमेश्वर को आकर्षित करता है। श्रीकृष्ण की कहानी में कुब्जा और सुदामा ही क्यों उत्तम उदाहरण हैं। क्यों राम शबरी ही के बेर खाते हैं क्यों केवट को गले लगाते हैं। खोजिए कोनसी ट्रिक है....~पवन राज सिंह

गुरुवार, 28 जनवरी 2021

दिव्य रस में सराबोर होना है

 तय शुदा समय है हर वस्तु का, उसके बाद उसका उपयोग अनुपयोगी हो जाता है। हमें जो आनन्द इस संसार में प्राप्त है हम सोचते हैं ऐसा कुछ अब आगे नहीं मिलेगा। हमारी महसुसियत ही हमें बहला रही है...
हम कड़ाही के पात्र में उन तीन चार जलेबियों की तरह हैं जो हलवाई की झर में आने से हर बार छूट जाती हैं। हमें यह ज्ञान नहीं है की इस जीवन के अंत के बाद एक सुगम सफर का आरम्भ है। अगले पात्र में हमें मीठे रस में सराबोर कर दिया जाएगा पर हमें इस भवसागर की आंच में जल रहे इच्छाओं के तेल में पकने की आदत सी हो गई है। अगले पात्र में जब रस में सराबोर हम हों जाएंगे तो हमें  उसमें तो आनन्द मिलेगा ही पर उसको जो चखने वाला मालिक है वह अनुभूति परमानन्द की होगी...~पवन राज सिंह

मंगलवार, 26 जनवरी 2021

आकाश से साधना का मिलन

 मस्तिष्क की ऊंचाइयों और दिल की गहराइयों में बड़ा फर्क है। एक आकाश के जितना ऊँचा और एक साधना के धरातल से गहरा है, आकाश की अपनी ऊंचाइयां हैं वह ऊर्जा का रूप है वह स्वयं सिद्ध है पर साधनायें जब अपना रूप दिखाती हैं तो वह मस्तिष्क की ऊंचाइयों से भी परे आकाश को नीचे छोड़ ऊपर की ओर उर्ध्वगामी हो जाती हैं। वह सातों आकाशों को छोड़ परम्-पुरुष से जा लगती है। आकाश को साधना के स्तर को समझना चाहिए और साधना को चाहिए की वह आकाश का सम्मान करे। आकाश में जो दोनों ज्योति पुंज हैं चन्द्र और सूर्य वह धरती की साधना की कामना भी है और उसके कल्याण के साधन भी। साधना का साधन आकाश है, न साधना को अंहकार हो न ही आकाश को ग्लानि हो।  दोनों का मिलन ही परम् सत्य है......

~पवन राज सिंह

सोमवार, 25 जनवरी 2021

कोई तो इसका जवाब दे

 मन के पेड़ पर जो पंछी कलरव कर रहे हैं इनको कोई ऐसा दाना डाला जाये जिससे की बार बार दिमाग की नसों में होने वाला स्पंदन सर्वदा के लिए समाप्त हो जाये। क्या उपाय इस ख्वाहिशों के बागीचे में उगे इन मुरझाये पौधों का जिनको सींचते सींचते मनु की मनुष्यता घिसती चली जा रही है। इस भवसागर के अंदर कोई किनारा तो नज़र आना चाहिए बार बार हर बार नहीं हारने वाली दौड़ जिसमें सभी भाग लेते हैं सभी हार जाते हैं सभी को यह गुमान भी रहता है की हम ही जीतेंगे। इन सब सवालों के लिए कोई ऐसा उपाय खोजा जाये जो इन पर पूर्ण विराम लगा दे। उपाय वह कुंजी है जो जन्मों के इस फेर को मिटा देगी......?????~पवन राज सिंह

रविवार, 24 जनवरी 2021

कितने नासमझ हैं हम

 हमारी समझ ऐसी है जैसे मन्दिर में बजने वाली टनटन को बच्चा कुल्फ़ी वाले की टनटन समझ लेता है,  हमको इशारा कुछ और मिलता है और हम उसे समझते कुछ हैं हाँ माना इसमें परमेश्वर की माया हमें भ्रमित करती है पर यह जगत कल परसों तो नहीं बना मनुष्य को ये सब अनुभव भी है और जानकारी भी पर फिर भी मासूम सा समझदार मनुष्य बार बार हर बार सामने हो रहे इशारों को नहीं समझता। इशारा करने वाला कोई व्यसन से हमें मुक्ति दिलाने के लिए कुछ कहानी कह सकता है, कोई वैद्य गम्भीर रोग से मुक्ति दिलाने के लिए कड़वी दवा दे रहा है। यह हम टाल देंगे तो टाल दिए जाएंगे। अपने आस-पास दैनिक जीवन में हो रहे इशारों को देखिये सृष्टि हमें इशारों में कुछ कह रही है.....कितने नासमझ हैं हम

~पवन राज सिंह

कलाम 19

 दर्द-ए-इश्क़ दिल को दुखाता है बहुत विसाल-ए-यार अब याद आता है बहुत ज़ब्त से काम ले अ' रिंद-ए-खराब अब मयखाने में दौर-ए-ज़ाम आता है बहुत साक़ी...