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शनिवार, 22 अक्टूबर 2022

कलाम 15

 जिसने जो बांटा ख़ुदा से वो ही अता हुआ

इश्क़ बांटा खूब हमने हमें इश्क़ अता हुआ


रहता है बनके फ़क़ीर बयाबाँ में वो अमीर

अपने निज़ाम के कदमों पर वो फ़ना हुआ


ज़र्रे से बना पत्थर पत्थर से फिर गौहर हुआ

पीरों के घर अतफ़ाल नहीं पीर ही पैदा हुआ


हस्ती मिटाये बगैर,   बढ़ती नहीं कीमत यहाँ

पीतल मिला जब कीमिया में तो सोना हुआ


गर्दिश में जिसकी लगे हुए हैं शम्स-ओ-कमर

काशी में सनमखाना तो मक्के में काबा हुआ


ज़न्नत-ओ-दोज़ख़ के चक्कर में न पडो अभी

जिस ने रखा ईमान को ताजा वो मुसलमाँ हुआ


हासिल हों करामातें कैसे ये राज' कोन कहे

करामातों का खज़ाना दरवेश का क़ासा हुआ

~पवन राज सिंह


कलाम 14

 वाइज़ तुझे फिकर है क्यों सारे जहान की

रिंदों को मिल गयी है दवा हर परेशान की


बेफिक्र हुए जाता है मयखाने से हर कोई 

साक़ी के ज़ाम में है सिफ़त आसमान की


मुहब्बत से मिल रहे हैं रकीबों से भी गले

तारीफ़ क्या करूँ...साक़ी तेरी दूकान की


महफ़िल में तेरी झूमके फिर लोट आते हैं

झुमके अपनी धुन में लोटके,  आ जाते हैं

बातें मीठी लगती हैं बहुत तेरी जबान की


वादे का तेरे एतबार उनको है,   इस कदर

आ गये हैं वो इज्जत गंवा के खानदान की


खोजती हैं यार के दर को रिंदों की टोलियां

खुशबु आती है जहाँ से ज़न्नत के ज़ाम की

 

बात ये राज़ की है तू किसी से न कहना...

खबर न हो जाये सब को यार के मकान की

~पवन राज सिंह

कलाम 13

 इश्क़ में दीवानों का ये हाल देखा है

बेगानों को होते हम-ख़याल देखा है


दीदार-ए-यार में मिलता है वो लुत्फ़

हँसते हुए हर एक परेशान देखा है


समझ न आ सके अंदाज फकीरी के

की सख्त दौर को भी आसान देखा है


साक़ी तेरे मयखाने में वो शराब नहीं

यार के हाथों में  वो ज़ाम देखा है


मस्तों के सर पे है जब हाथ यार का

ठीक होते हुए हर बीमार देखा है


राहे-इश्क़ के राज़ भी बड़े गहरे हैं

हर दिल में वो रोशन चराग़ देखा है

~पवन राज सिंह


कलाम 12

 





 लबों तक आये अल्फ़ाज़ों को दबाया न जाएगा
दिलदार के दर से दीवानों को उठाया न जाएगा

चिलमन में छिपे बैठे हैं  ख़ौफ़-ए-जहाँ से वो

आशिक को जल्वा-ए-हुस्न दिखाया न जाएगा

मयखाने में रोनक नहीं हसीन साक़ी है कहाँ
क्या रिंदों के आगे ज़ाम बढाया न जाएगा

बहकी हुई हवायें चली आयीं अक़्ल के घर में
आशिक के दिल का चराग़ जलाया न जाएगा

है अज़ब बात ये कि ख़ामोशी छाई है तूर पे  
मूसा को कलाम-ए-ख़ुदा सुनाया न जाएगा

कह दे जो कहना है अपने दीवानों से अ' यार
राज़ तेरे दिल का तुझसे छुपाया न जाएगा
~पवन राज सिंह


कलाम 11

 हम तेरे क़रम के भरोसे मस्त रहते हैं

जो नहीं मानते तुझे वो पस्त रहते हैं


 ईसा करे #दवा तो कतार है बीमारों की

#दीदार से दीवाने तेरे तन्दरूस्त रहते हैं


रिंदों की फ़िक्र रहती है #वाइज़ को बहुत

पीने वाले #ज़ाम पीकर भी चुस्त रहते हैं


कूचा-ए-यार में फिरते हैं सुब्ह-ओ-शाम

दीदार-ए-यार में प्यासे हर वक़्त रहते हैं


क्या #इनाम हो क्या #अंजाम सोचते नहीं

दौरे-इन्तेहान में #मुरीद तेरे सख्त रहते हैं


राज़ क्या #ख़ुदा ने छुपा रखा है #इश्क़ में

दर-ए-यार पे हाज़िर दीवाने #मस्त रहते हैं

~पवन राज सिंह


शुक्रवार, 21 अक्टूबर 2022

कलाम 10

 जलने लगी शमआ जब दिल के #चराग़ में

आ गए परवाने खुद-ब-खुद आस पास में


उम्रें गुज़र गईं मगर बिछड़े न मिल सके 

दीवाने भटक रहे हैं #यार की #तलाश में


दीवानों के #दीवान को समझ लेंगे दीवाने

#आलिम ये कहेगा क्या है उसके #कलाम में


हैरान है #ज़माना क्यों परेशान है ये सुलतान

क्या रँग दिख गया है #ख़ुसरो को #निज़ाम में


नहीं कोई कमाल मेरे अंदाज़-ए-सुख़न में 

लिखता हूँ अंदाज़-ए-फ़कीराना #कलाम में


#राज़ तुम पर ये #अयाँ हो जाये तो हो गज़ब

#साक़ी ने क्या हमको पिलाया है #शराब में

~पवन राज सिंह

कलाम 9

 कौल-ओ-करार के कच्चे हैं पर #इश्क़ हमारा सच्चा है

दुनिया में सबसे #खराब हैं पर #यार हमारा अच्छा है


इख़्तियार में सब है उसके चाहे प्यार करे चाहे ठुकरा दे

दर-ए-यार पे अब दम निकले इरादा हमारा पक्का है


हम वो #बिस्मिल #आशिक़ है जो जीते जि फ़ना होयेंगे

उस #कातिल हसीन के कदमों तले सर हमारा रक्खा है


यार का नाम है #जिक्र अपना इश्क़ #इबादत है अपनी

मदीना है #गली यार की और दर-ए-यार हमारा #मक्का है 


करने को जो काम आये हैं करके रहेंगे पूरा उसे 

शमआ पे फ़िदा हो #परवाना इतना सा हमारा किस्सा है


इश्क़-ए-हक़ीक़ी राज़ है वो जो सीना-ब-सीना चलता है

जिस राह से होकर #वली गुज़रे बस वही हमारा रस्ता है

~पवन राज सिंह

कलाम 19

 दर्द-ए-इश्क़ दिल को दुखाता है बहुत विसाल-ए-यार अब याद आता है बहुत ज़ब्त से काम ले अ' रिंद-ए-खराब अब मयखाने में दौर-ए-ज़ाम आता है बहुत साक़ी...