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शनिवार, 22 अक्टूबर 2022

कलाम 12

 





 लबों तक आये अल्फ़ाज़ों को दबाया न जाएगा
दिलदार के दर से दीवानों को उठाया न जाएगा

चिलमन में छिपे बैठे हैं  ख़ौफ़-ए-जहाँ से वो

आशिक को जल्वा-ए-हुस्न दिखाया न जाएगा

मयखाने में रोनक नहीं हसीन साक़ी है कहाँ
क्या रिंदों के आगे ज़ाम बढाया न जाएगा

बहकी हुई हवायें चली आयीं अक़्ल के घर में
आशिक के दिल का चराग़ जलाया न जाएगा

है अज़ब बात ये कि ख़ामोशी छाई है तूर पे  
मूसा को कलाम-ए-ख़ुदा सुनाया न जाएगा

कह दे जो कहना है अपने दीवानों से अ' यार
राज़ तेरे दिल का तुझसे छुपाया न जाएगा
~पवन राज सिंह


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कलाम 19

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