लबों तक आये अल्फ़ाज़ों को दबाया न जाएगा
दिलदार के दर से दीवानों को उठाया न जाएगा
चिलमन में छिपे बैठे हैं ख़ौफ़-ए-जहाँ से वो
आशिक को जल्वा-ए-हुस्न दिखाया न जाएगा
मयखाने में रोनक नहीं हसीन साक़ी है कहाँ
क्या रिंदों के आगे ज़ाम बढाया न जाएगा
बहकी हुई हवायें चली आयीं अक़्ल के घर में
आशिक के दिल का चराग़ जलाया न जाएगा
है अज़ब बात ये कि ख़ामोशी छाई है तूर पे
मूसा को कलाम-ए-ख़ुदा सुनाया न जाएगा
कह दे जो कहना है अपने दीवानों से अ' यार
राज़ तेरे दिल का तुझसे छुपाया न जाएगा
~पवन राज सिंह
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें