जिसने जो बांटा ख़ुदा से वो ही अता हुआ
इश्क़ बांटा खूब हमने हमें इश्क़ अता हुआ
रहता है बनके फ़क़ीर बयाबाँ में वो अमीर
अपने निज़ाम के कदमों पर वो फ़ना हुआ
ज़र्रे से बना पत्थर पत्थर से फिर गौहर हुआ
पीरों के घर अतफ़ाल नहीं पीर ही पैदा हुआ
हस्ती मिटाये बगैर, बढ़ती नहीं कीमत यहाँ
पीतल मिला जब कीमिया में तो सोना हुआ
गर्दिश में जिसकी लगे हुए हैं शम्स-ओ-कमर
काशी में सनमखाना तो मक्के में काबा हुआ
ज़न्नत-ओ-दोज़ख़ के चक्कर में न पडो अभी
जिस ने रखा ईमान को ताजा वो मुसलमाँ हुआ
हासिल हों करामातें कैसे ये राज' कोन कहे
करामातों का खज़ाना दरवेश का क़ासा हुआ
~पवन राज सिंह
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