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शुक्रवार, 21 अक्टूबर 2022

कलाम 8

 कोन है जो इश्क़ में सब निसार करे

राहे-इश्क़ में जो खुद को कुरबान करे


आशिक़ कहेंगे उसको इस जहाँ में लोग

कूचा-ए-यार में जो ख़ुदको बदनाम करे


भटक न जाए कहीं ये मामला दिल का

यार का वो है जो यार पर एतबार करे


काबिल वही है इस जहान-ए-ख़राब में

ख़ुद से पहले जो गैरों का ख़याल करे


सबको सताता है ख़याल रोजे-हश्र का

क्या जवाब देंगे जब ख़ुदा सवाल करे


राज़ अब फैसले की घड़ी का जान लो

ईमाँ वो दलील है जो खुद इंसाफ करे

~पवन राज सिंह



कलाम 7

 परवाना शमआ का हूँ इश्क़ में दीवाना

आता हूँ बिन बुलाये आशिक़ हूँ पुराना


होती नहीं महफ़िल में चरागों से रौशनी

आता हूँ जमीं पर मैं बनकर के सितारा


कबसे उदास है यूँ साक़ी तेरा मयखाना

आता हूँ मयकदे में लिए अंदाजे-रिंदाना


इश्क़ तो इश्क़ है ये हो जाये किसे भी

आता हूँ मैं तो क्यों परेशान है जमाना


दरख्तों की छाँव में रह लेने दो राही को

आता हूँ सुकून-ए-क़ल्ब को मैं बेचारा


राज़ खुल जाएंगे मेरे गुज़र जाने के बाद

आता हूँ मैं करने को आबाद ये वीराना

~पवन राज सिंह

कलाम 6

 ज़ुदा ख़ुद से करके अपना हमें बनाया है

जल्वा यार ने दीवानों को दिखलाया है


है निहाँ भी और जल्वा-नुमा भी है वही

दिखाई जो नहीं देता और नज़र आया है


दो घूंट यहीं चख ली जाये तो है बेहतर 

शैख साहब ने चुपके से ये फ़रमाया है 


हो रहा है शोर उधर और मयखाना इधर

साक़ी तेरे रिंदों ने ठिकाना कहाँ बनाया है


इल्म किताबों में जो नहीं ये वही तो है

सबक शम्स तबरेज़ ने ये सिखलाया है


कदमों में है सर और उठता नहीं दर से

आते आते मेरी निस्बत में ये रँग आया है


राज़-ए-इश्क़ कह दें ग़र दीवाने ये तुमसे

क्यों शमआ पर परवानों का यूँ साया है

~पवन राज सिंह


मुरीद से बात

 याद आती है तुझे मेरी तो 

मेरी यादों से बात किया कर

वजूद जब न हो सामने तो

अक़्स से बात कर लिया कर


मुलाक़ात न हो पाये न सही

रूह से हिसाब कर लिया कर

ग़र मेरी आवाज न आये तो

बात दिल की सुन लिया कर 


दीवानों का दिल का रिश्ता है

ज़ाम इश्क़ का पि लिया कर

इक रोज बन जाएगी तेरी भी

यार को सलाम कर लिया कर


क्यों तड़पता है मजनू की तरह

थोडा इन्तजार कर लिया कर

हिज्र के अपने मजे हैं दीवाने

ये ज़श्न है इसे मना लिया कर


क्यों नहीं समझता तू ये बात

दूर से ही प्यार कर लिया कर

मैं राज़-ए-इश्क़ हूँ यार जॉनी

दिल में मुझे छिपा लिया कर

~पवन राज सिंह


कलाम 5

 उम्र भर का  कमाया हुआ नाम

जो तेरा साथ देकर खो चूका हूँ मैं


तलाश में है ये जमाना जिसकी 

वो मकाम हासिल कर चूका हूँ मैं


अब कहीं किनारा न कर ले वो

जिसकी खातिर याँ आ चूका हूँ मैं


है उदास रहगुज़र भी तेरे बिन

जिस पर अकेला चल चूका हूँ मैं 


कर रहा हूँ फ़रियाद तेरी खातिर

सज़्दे ख़ुदा के आगे कर चूका हूँ मैं


राज़ मेरे न कहना सारे जहाँ से

जो तुमसे अकेले में कह चूका हूँ मैं

~पवन राज सिंह


कलाम 4

 हुस्न पर आये शबाब जरूरी है

आशिक़ ना हो खराब जरूरी है


तेरी याद रुला न दे इस दिल को

इश्क़ में इक मुलाक़ात जरूरी है


हिज़्र की आंधी से परेशां हैं हम

इन आँखों को आराम जरूरी है


आज वो तस्सवुर में मिल जायें

नींद से कह दो ख़्वाब जरूरी है


पीने वाले रोज हो जाते हैं रुस्वा

तेरे मयखाने में शराब जरूरी है


आशिक की उधारी है माशूक पर

 इश्क़ में बराबर हिसाब जरूरी है


तेरी जफ़ा से कत्ल हुआ है इश्क़

मेरी वफाओं का इंसाफ जरूरी है


राज़ पूछता हूँ मैं तुम्हारे दिल का

सवालों का देना जवाब जरूरी है

~पवन राज सिंह


गुरुवार, 20 अक्टूबर 2022

कलाम 3

 मिट्टी में मिट्टी होकर अब कोन घुलता है

हमसे हमारा होकर अब कोन मिलता है 


तुम चले आओ तो दम आराम से निकले

सांसों की आस बनकर अब कोन रहता है


लहरें मचल रही हैं साहिल से मिलने को

बेजान आशिक़ से गले अब कोन लगता है


दीवाना वो है जो अपने माशूक सा लगे

यार के रँग में रंगा हुआ अब कोन दिखता है


है दिल के करीब वो और है मुझसे दूर भी 

अपना साया बनकर अब कोन चलता है


उससे कही जो बात शहरभर में उड गई

राज़ मेरा जमाने को अब कोन कहता है

~पवन राज सिंह



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कलाम 19

 दर्द-ए-इश्क़ दिल को दुखाता है बहुत विसाल-ए-यार अब याद आता है बहुत ज़ब्त से काम ले अ' रिंद-ए-खराब अब मयखाने में दौर-ए-ज़ाम आता है बहुत साक़ी...