Watch

शुक्रवार, 21 अक्टूबर 2022

कलाम 5

 उम्र भर का  कमाया हुआ नाम

जो तेरा साथ देकर खो चूका हूँ मैं


तलाश में है ये जमाना जिसकी 

वो मकाम हासिल कर चूका हूँ मैं


अब कहीं किनारा न कर ले वो

जिसकी खातिर याँ आ चूका हूँ मैं


है उदास रहगुज़र भी तेरे बिन

जिस पर अकेला चल चूका हूँ मैं 


कर रहा हूँ फ़रियाद तेरी खातिर

सज़्दे ख़ुदा के आगे कर चूका हूँ मैं


राज़ मेरे न कहना सारे जहाँ से

जो तुमसे अकेले में कह चूका हूँ मैं

~पवन राज सिंह


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कलाम 19

 दर्द-ए-इश्क़ दिल को दुखाता है बहुत विसाल-ए-यार अब याद आता है बहुत ज़ब्त से काम ले अ' रिंद-ए-खराब अब मयखाने में दौर-ए-ज़ाम आता है बहुत साक़ी...