मिट्टी में मिट्टी होकर अब कोन घुलता है
हमसे हमारा होकर अब कोन मिलता है
तुम चले आओ तो दम आराम से निकले
सांसों की आस बनकर अब कोन रहता है
लहरें मचल रही हैं साहिल से मिलने को
बेजान आशिक़ से गले अब कोन लगता है
दीवाना वो है जो अपने माशूक सा लगे
यार के रँग में रंगा हुआ अब कोन दिखता है
है दिल के करीब वो और है मुझसे दूर भी
अपना साया बनकर अब कोन चलता है
उससे कही जो बात शहरभर में उड गई
राज़ मेरा जमाने को अब कोन कहता है
~पवन राज सिंह
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