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बुधवार, 13 जनवरी 2021
मंगलवार, 12 जनवरी 2021
जरा पलटो देखो क्या छूट गया है
यह हो सकता है जो व्यवस्था आप बनाना चाहते हैं बन जाए जो ऐश्वर्य अनुभव करना चाहते हैं वह भी प्राप्त हो जाए। उसके पश्चात क्या? क्या यह अनुभूति तुम्हें पूर्णता में मिला सकती है। पूर्णता किसी एक तरफ की पुरानी दीवार को ढहा कर नई बनाने से नहीं होगी। यह पूर्णता तो केवल भौतिकता की है किन्तु इसके अलावा भी तीन दीवारें हैं जो फिर नई बनानी होंगी। ये तीन तरफ का काम अभी बाकी है इसके बाद पूर्ण मानव कर्म की गद्दी प्राप्त होगी तुम्हें। तुम्हारे जन्म से अब तक जो कुछ तुम भुला चुके हो जानते बुझते वह सब याद करो उसे सुधारो, वह सत्य हो या कर्म हो या धर्म या सम्बन्ध हो या दान हो या आराधना। आँख तुमने बन्द कर रक्खी हैं जगत में सब कुछ कर सकते हो घुमो जरा पलटो देखो
~पवन राज सिंह
रविवार, 10 जनवरी 2021
अपने अपने चश्मे उतारो
सत्य की रौशनी केवल एक है, परमात्मा सबका एक ही है। साईं बाबा का वचन जो अक्सर बोला करते थे 'सबका मालिक एक'
धार्मिक मानसिकताएं और मान्यताएं सबकी अपनी अपनी हैं। जिस प्रकार सूर्य का प्रकाश एक है पर धरती पर रहने वालों ने इसको अपने अपने रँगीन चश्मों से देख समझ रक्खा है। गलती इसमें किसी की नहीं जिस वातावरण में जिस स्थान पर जिस भाषा में जिसे जो समझ आ सकता था परमेश्वर ने उसे उसी रूप में ज्ञान को सम्पादित किया। बात टकराव की वहां आई जब एक ने कहा मेरा चश्मा अच्छा है इसका रँग तेरे वाले से अच्छा है। वो रँग और ढंग की बातों पर उलझने लगे। जो कुछ है इस ब्रह्माण्ड में उसका एक रचियता है। आप अपने चश्मों को उतारकर वास्तविक सूर्य के प्रकाश को देखो.
~पवन राज सिंह
शनिवार, 9 जनवरी 2021
परमेश्वर की रचना का निरादर न करें
संसार की रचना करने वाले ने कुछ गलत तो नहीं रच दिया, कहीं कोई त्रुटि तो उससे नहीं हो गई। यह अक्सर सोचना पड़ता है मुझे, मैं यह क्यों सोचता हूँ क्या मेरा यह विचार गलत है। आप को यह लगेगा की यह क्या विचार आया। हाँ, यह विचार आया किन्तु इसके पीछे कारण है; जब भी कोई व्यक्ति यह सोचता है की मेरे साथ संसार में गलत हो रहा है, मैं सबसे दुखी, दुर्भाग्यवान या अभागा हूँ मेरा जीवन ही गलत है तो यह विचार उस रचनाकार की कृति को दोष देता है। क्योंकि जिसने तुम्हें रचा है वह सार्थक रचियता है उसका फेंका हर बीज अद्भुत है सकारात्मक है। क्यों कोई अपने आपको हीन और तुच्छ समझे,ऐसा विचार परमेश्वर को दोष देने के पाप जैसा है।
~पवन राज सिंह
जीवन का खेल
जिसने इस जीवन के प्रांगण में तुम्हें खेल खेलने के लिए यहां भेजा.....खेल तो यह नहीं था जो तुम खेल रहे हो अलमारी खोलना बन्द करना तो नहीं सिखाया था तुम्हें, तुम्हें तो खोलने थे वो खिड़कियों के पल्लै जो पूर्व जन्म में तुमने ढलती उम्र के साथ बन्द कर दिए थे। पूर्व जन्मों से सञ्चित जो प्रकाश तुम्हारे हिस्से का था न तो तुम उसे प्राप्त कर पा रहे हो और न ही उसकी नई खेप इस जन्म में कमाने की कोशिश कर रहे हो। भौतिकता का लेप लगाकर सारे बदन पर अपनी रँगीन तबियत का रँगीन नजारा करने वालों देखो, जब तुम पहले मनुज के काल में जन्मे थे तब तुम क्या थे और आज क्या बन गए हो। स्वतः ही तुम्हारे मस्तिष्क की ट्यूब लाइट बन्द होकर तुम्हारी आत्मा का सूर्य जगमगा उठेगा तुम्हें जाग्रुत करेगा, अपने नचिकेता को जगाओ शायद तुम्हें अपने पूर्व जन्म का कोई फल मिल जाये, जन्मों से चले आ रहे चक्र को तुम विराम दे सको.....
तो इन्तजार किस बात का किसी पीपल के पेड़ के नीचे बैठो कुछ देर....
~पवन राज सिंह
ध्यान से दुरी या नजदीकी
ध्यान से दुरी या नजदीकी:
क्या ध्यान के विमान पर बैठकर हम उड़ सकते हैं, अपनी असफलताओं को अपनी दुविधाओं को दूर कर सकते हैं। ध्यान क्या कोई राज-मार्ग है जो सामान्य सड़क से अलग है, जहाँ इस तरह की यातायात की उथल पुथल नहीं है। क्या इन वाहनों का कोलाहल नहीं है वहाँ, यही वे प्रश्न हैं जो चिर काल से सामान्य व्यक्ति अपने ध्यान से दुरी और नजदीकी के अंतर को खोजता रहता है। आइये कुछ ध्यान पर ध्यान दें
किसी भी योगिक सम्प्रदाय की विधियाँ या प्रक्रिया जिनसे सामान्य व्यक्ति एक सिद्ध पुरुष और फिर दिव्य पुरुष बनता है। यह एक सहज और सरल और नियमित प्रयास है जो बनते बनते बन जाता है। किसी से किसी ने कहा राम का नाम लो श्वास के साथ एक श्वास भी खाली न जाये, अभ्यासी ने कहा मुझसे तो राम कहा न जाएगा तो अनुभवी ने उससे कहा मरा तो कह सकते हो। अभ्यासी बड़ा प्रसन्न हुआ वह एक लुटेरा था राह चलतों को लूटना मारना उसका काम था उसके लिए मरा कहना सहज था। उसने उस अनुभवी की बात को बहुत सहजता से स्वीकारा वह एक सिद्ध पुरुष हुआ फिर दिव्यता प्राप्त हुई। आप जिस जाती धर्म संस्कार से जुड़े हैं आस पास जो भी सीख रहे हैं। उसे शने शने करते रहें श्वास के साथ जो भी आता जाता नाम है वह ही तुम्हें योगी बना देगा सारा सिद्धांत श्वासों के मध्य है। आँख बन्द करके करेंगे तो ध्यान होगा और गहरे में उतरेंगे तो समाधि पर इन सबसे पहले इनके बारे में सोचना बंद करना होगा बैठना होगा। मन (mood) के इंजन को बन्द नहीं कर सकते तो उसके गियर बॉक्स को न्यूट्रल करना होगा। जो कुछ सहजता से हो जाए वह करते रहिए। यहां हम आपको यह तक कह रहे हैं जो भी आप करेंगे जो भी आप सीख चुके हैं उसी में एकाग्र रहें। हम अपनी और से कुछ आप पर थोपना नहीं चाहते। बस प्रयासरत रहें
~पवन राज सिंह
दोषारोपण से बचें
दोषारोपण से बचें
दूसरे को दोष देकर पाप लेने वाले बहुत हैं, भरे पड़े हैं अटे पड़े हैं। जरा सी नजर घुमी किसी ने पीठ फेरी और उसकी बुराई शुरू दोषारोपण लगाने में लोग तो Phd० करके बैठे हैं। महारत हासिल है उनकी कोई बात सुन ले तो तीन चार दिन आदमी उनका कायल हो जाता है। ऐसे व्यक्तियों का साथ अच्छा नहीं है, आज ही त्यागिये। अच्छाई देखिये लोगों में उनकी व्यथा सुनिए उनका वास्तविक हाल समझिए,एक दिन उनकी जूती में पैर रख के देखिए। आपको स्वतः आभास होगा और आप दोषारोपण के पाप से बचेंगे इससे आपके किए पूण्य समाप्त नहीं होंगे इसमें श्रम नहीं करना बस थोडा कन्ट्रोल करना है। आगे आपकी मर्जी या खुदगर्जी..
~पवन राज सिंह
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