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शनिवार, 11 जुलाई 2020

रूठ के जाना तेरा ~दाग देहलवी

ले चला जान मेरी रूठ के जाना तेरा
ऐसे आने से तो बेहतर था न आना तेरा

अपने दिल को भी बताऊँ न ठिकाना तेरा
सबने जाना जो पता एक ने जाना तेरा

तू जो ऐ ज़ुल्फ़ परीशान करती है
किसके उजड़े हुए दिल में ठिकाना तेरा

आरज़ू ही न रही सुब्हे-वतन की मुझको
शामे-गुरबत है अजब वक्त सुहाना तेरा

ये समझ कर तुझे ऐ मौत लगा रखा है
काम आता है बुरे वक्त में आना तेरा

क़ाबा-ओ-दैर में या चश्मे-ओ-दिले-आशिक में
इन्हीं दो-चार घरों में है, ठिकाना तेरा

दाग को यूँ वो मिटाते है और फरमाते हैं
तू बदल डाल हुआ नाम पुराना तेरा

~दाग देहलवी

गुरुवार, 9 जुलाई 2020

बंदे ख़ुदा को प्यारे हैं


हज़ार रंजो-मुसीबत के दिन गुजारे हैं
कभी जो लड़ गई किस्मत तो वारे-न्यारे हैं

ख़ुदा की शाने-करीमी को पूछना क्या है
गज़ब तो ये है, गुनहगार हम तुम्हारे हैं

बुरा न जान, हसीनों को मान, ऐ वाइज़
ख़ुदा गवाह, ये बन्दे, ख़ुदा को प्यारे हैं

तुम्हारी *चश्मे-फसूंसाज़ से नहीं शिकवा
हमें है खूब खबर जिनके ये इशारे हैं

वफ़ा करो कि जफ़ा एख्तियार है तुमको
बुरे हैं या भले हैं जैसे हैं तुम्हारे हैं

खुलेन बाबे-इबादत तो क्या करे कोई
बहुत दुआ ने पुकारा है, हाथ मारे हैैं

बहकती-फिरती हैं आहें, तबाह हैं नाले
रफीक दिल के सहारे से बेसहारे हैं

जमीं पे रश्के-महो-महर हैं हसीं लाखों
फ़लक में दो ही तो चमके हुए सितारे हैं

वो ^तुन्द-खूँ हैं तो हों, 'दाग' कुछ नहीं परवाह
मिजाज बिगड़े हुए सैकड़ों संवारे हैं
~दाग देहलवी
*जादुई आँखें ^बिगड़े स्वभाव वाला

सोमवार, 6 जुलाई 2020

कुछ शेर जो कहावत हो गए

ऐसे बहुत से शायर हैं, जिनके शेर का दूसरा मिसरा (line) इतना मशहूर हुआ, कि लोग पहले मिसरे (line) को तो भूल ही गये।
ऐसे ही, चन्द उदाहरण यहाँ पेश हैं:


"ऐ सनम वस्ल की तदबीरों से क्या होता है??
वही होता है जो मंज़ूर-ए-ख़ुदा होता है।"
- मिर्ज़ा रज़ा बर्क़

 "भाँप ही लेंगे इशारा सर-ए-महफ़िल जो किया,
ताड़ने वाले क़यामत की नज़र रखते हैं।"
- माधव राम जौहर


"चल साथ कि हसरत दिल-ए-मरहूम से निकले,
आशिक़ का जनाज़ा है, ज़रा धूम से निकले।"
- मिर्ज़ा मोहम्मद अली फ़िदवी


 "दिल के फफोले जल उठे सीने के दाग़ से,
इस घर को आग लग गई, घर के चराग़ से।"
- महताब राय ताबां


 "शहर में अपने ये लैला ने मुनादी कर दी,
कोई पत्थर से न मारे मेंरे दीवाने को।"
- शैख़ तुराब अली क़लंदर काकोरवी


'मीर' अमदन भी कोई मरता है?
जान है तो जहान है प्यारे।"
- मीर तक़ी मीर

"ईद का दिन है, गले आज तो मिल ले ज़ालिम,
रस्म-ए-दुनिया भी है,मौक़ा भी है, दस्तूर भी है।"
- क़मर बदायूंनी

"क़ैस जंगल में अकेला है मुझे जाने दो,
ख़ूब गुज़रेगी, जो मिल बैठेंगे दीवाने दो।"
- मियाँ दाद ख़ां सय्याह


 "शब को मय ख़ूब पी, सुबह को तौबा कर ली,
रिंद के रिंद रहे हाथ से जन्नत न गई।"
- जलील मानिकपुरी


"ये जब्र भी देखा है तारीख़ की नज़रों ने,
लम्हों ने ख़ता की थी, सदियों ने सज़ा पाई।"
- मुज़फ़्फ़र रज़्मी।"

Courtesy:Whatsapp University
संकलन :पवन राज सिंह

मेरे जनाज़े के हमराह


बुतों ने होश सम्भाला जहां शऊर आया
बड़े दिमाग बड़े नाज़ से गरूर आया

उसे हया इधर आई उधर गरूर आया
मेरे जनाज़े के हमराह दूर दूर आया

जबां पे उनकी जो भुलेसे नामे-नूर आया
उठा के आईना देखा वहीं गरूर आया

तुम्हारी बज़्म तो ऐसी ही थी निशात-अफ़्ज़ा
रक़ीब ने भी अगर पी मुझे सरुर आया

अदू को देख के आँखों में अपने खून उतरा
वो समझे बादा-ए-गुलरंग का सरुर आया

कसम भी वो कभी कुरआन की नहीं खाते
ये रश्क है उन्हें क्यों इसमें जिक्रे-हूर आया

किसी ने ज़ुर्म किया मिल गई सजा मुझको
किसी से शिकवा हुआ मुझपे मुंह जरूर आया

वहीं से दाग सियह-बख्त को मिली जुल्मत
जहां से हजरते-मूसा के हाथ नूर आया

~दाग देहलवी

नज़र देख रहे हैं


सब लोग, जिधर वो हैं, उधर देख रहे हैं
हम देखने वालों की नज़र देख रहे हैं

कोई तो निकल आएगा सरबाज़े-मुहब्बत
दिल देख रहे हैं, वो जिगर देख रहे हैं

अब ए निगाहे-शौक़ न रह जाए तमन्ना
इस वक्त इधर से वो उधर देख रहे हैं

कब तक है तुम्हारा सुख़न-ए-तल्ख गवारा
इस ज़हर में कितना है असर देख रहे हैं

कुछ देख रहे हैं दिले-बिस्मिल का तड़पना
कुछ गौर से कातिल का हुनर देख रहे हैं

क्यों कुफ़्र है दीदारे-सनम, हजरते-वाइज़
अल्लाह दिखाता है बशर देख रहे हैं

पढ़-पढ़ के वो दम करते हैं कुछ हाथ पर अपने
हंस-हंस के मेरा ज़ख्मे-ज़िगर देख रहे हैं

मैं दाग हूँ मरता हूँ इधर देखिए मुझ को
मुंह फेर कर ये आप किधर देख रहे हैं

~दाग देहलवी

शनिवार, 4 जुलाई 2020

दाग कहां रहता है

दिल में रहता है जो आँखों में निहां रहता है
पूछते फिरते हैं वो ~दाग~ कहां रहता है

कौन सा चाहने वाला है तुम्हारा ममनून
सर तो रहता नहीं  एहसान कहां रहता है

वो कड़ी बात से लेते हैं जो चुटकी दिल में
पहरों उनके लबे-नाजुक पे निशां रहता है

मैं बुरा हूँ तो बुरा जान के मिलिए मुझसे
एब को एब समझिए तो कहां रहता है

खाना-ए-दिल में तकल्लुफ भी रहे थोडा सा
कि तेरा दाग तेरा दर्द यहां रहता है

लामकां तक की खबर हजरते वाइज ने कही
ये (यह) तो फरमाइए कि अल्लाह कहां रहता है

अपने कूचे में नई राह निकाल अपने लिए
कि यहां मजमा-ए-आफतजदगां रहता है

ज़ख्म आएं तो सभी ख़ुश्क हुआ करते हैं
~दाग~ मिटता ही नहीं इसका निशां रहता है

~दाग देहलवी

अगर इन्सां होता

मौत का मुझको न खटका शबे-हिज्राँ होता
मेरे दरवाजे पे अगर आपका दरबां होता

गर मेरे हाथ तेरी बज़्म का सामां होता
मेज़बां मैं कभी होता, कभी मेहमां होता

दीन-दुनिया के मज़े जब थे कि दो दिल होते
एक में कुफ़्र अगर, एक में इमां होता

दिल को आसूदा जो देखा तो उन्हें जिद आई
इससे बेहतर तो यही था कि परेशां होता

बेनियाज़ी जो हुई मेरी तमन्ना से हुई
मुझको अरमाँ जो न होता तुझे अरमाँ होता

क्या गज़ब है नहीं इन्सां को इन्सां की कद्र
हर फ़रिश्ते को ये हसरत है इन्सां होता

हो गई बारे-गरां बन्दा-नवाज़ी तेरी
तू न करता अगर एहसान तो एहसां होता

दाग को हमने मुहब्बत में बहुत समझाया
वो (वह) कहा मान लेता अगर इन्सां होता

~दाग देहलवी


कलाम 19

 दर्द-ए-इश्क़ दिल को दुखाता है बहुत विसाल-ए-यार अब याद आता है बहुत ज़ब्त से काम ले अ' रिंद-ए-खराब अब मयखाने में दौर-ए-ज़ाम आता है बहुत साक़ी...