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सोमवार, 6 जुलाई 2020

मेरे जनाज़े के हमराह


बुतों ने होश सम्भाला जहां शऊर आया
बड़े दिमाग बड़े नाज़ से गरूर आया

उसे हया इधर आई उधर गरूर आया
मेरे जनाज़े के हमराह दूर दूर आया

जबां पे उनकी जो भुलेसे नामे-नूर आया
उठा के आईना देखा वहीं गरूर आया

तुम्हारी बज़्म तो ऐसी ही थी निशात-अफ़्ज़ा
रक़ीब ने भी अगर पी मुझे सरुर आया

अदू को देख के आँखों में अपने खून उतरा
वो समझे बादा-ए-गुलरंग का सरुर आया

कसम भी वो कभी कुरआन की नहीं खाते
ये रश्क है उन्हें क्यों इसमें जिक्रे-हूर आया

किसी ने ज़ुर्म किया मिल गई सजा मुझको
किसी से शिकवा हुआ मुझपे मुंह जरूर आया

वहीं से दाग सियह-बख्त को मिली जुल्मत
जहां से हजरते-मूसा के हाथ नूर आया

~दाग देहलवी

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