ऐसे बहुत से शायर हुए हैं, जिनका दूसरा मिसरा इतना मशहूर हुआ कि लोग पहले मिसरे को तो भूल ही गये। ऐसे ही चन्द उधारण यहाँ पेश हैं:-
"ऐ सनम वस्ल की तदबीरों से क्या होता है,
वही होता है जो मंज़ूर-ए-ख़ुदा होता है।"
- मिर्ज़ा रज़ा बर्क़
"भाँप ही लेंगे इशारा सर-ए-महफ़िल जो किया,
ताड़ने वाले क़यामत की नज़र रखते हैं।"
- माधव राम जौहर
"चल साथ कि हसरत दिल-ए-मरहूम से निकले,
आशिक़ का जनाज़ा है, ज़रा धूम से निकले।"
- मिर्ज़ा मोहम्मद अली फिदवी
"दिल के फफूले जल उठे सीने के दाग़ से,
इस घर को आग लग गई, घर के चराग़ से।"
- महताब राय ताबां
"ईद का दिन है, गले आज तो मिल ले ज़ालिम,
रस्म-ए-दुनिया भी है, मौक़ा भी है, दस्तूर भी है।"
- क़मर बदायूँनी
"क़ैस जंगल में अकेला ही मुझे जाने दो,
ख़ूब गुज़रेगी, जो मिल बैठेंगे दीवाने दो।"
- मियाँ दाद ख़ां सय्याह
'मीर' अमदन भी कोई मरता है,
जान है तो जहान है प्यारे।"
- मीर तक़ी मीर
"शब को मय ख़ूब पी, सुबह को तौबा कर ली,
रिंद के रिंद रहे हाथ से जन्नत न गई।"
- जलील मानिकपुरी
"शहर में अपने ये लैला ने मुनादी कर दी,
कोई पत्थर से न मारे मेरे दीवाने को।"
- शैख़ तुराब अली क़लंदर काकोरवी
"ये जब्र भी देखा है तारीख़ की नज़रों ने,
लम्हों ने ख़ता की थी, सदियों ने सज़ा पाई।"
- मुज़फ़्फ़र रज़्मी
Compiled :Pawan Raj Singh
Courtesy:Social Media
"ऐ सनम वस्ल की तदबीरों से क्या होता है,
वही होता है जो मंज़ूर-ए-ख़ुदा होता है।"
- मिर्ज़ा रज़ा बर्क़
"भाँप ही लेंगे इशारा सर-ए-महफ़िल जो किया,
ताड़ने वाले क़यामत की नज़र रखते हैं।"
- माधव राम जौहर
"चल साथ कि हसरत दिल-ए-मरहूम से निकले,
आशिक़ का जनाज़ा है, ज़रा धूम से निकले।"
- मिर्ज़ा मोहम्मद अली फिदवी
"दिल के फफूले जल उठे सीने के दाग़ से,
इस घर को आग लग गई, घर के चराग़ से।"
- महताब राय ताबां
"ईद का दिन है, गले आज तो मिल ले ज़ालिम,
रस्म-ए-दुनिया भी है, मौक़ा भी है, दस्तूर भी है।"
- क़मर बदायूँनी
"क़ैस जंगल में अकेला ही मुझे जाने दो,
ख़ूब गुज़रेगी, जो मिल बैठेंगे दीवाने दो।"
- मियाँ दाद ख़ां सय्याह
'मीर' अमदन भी कोई मरता है,
जान है तो जहान है प्यारे।"
- मीर तक़ी मीर
"शब को मय ख़ूब पी, सुबह को तौबा कर ली,
रिंद के रिंद रहे हाथ से जन्नत न गई।"
- जलील मानिकपुरी
"शहर में अपने ये लैला ने मुनादी कर दी,
कोई पत्थर से न मारे मेरे दीवाने को।"
- शैख़ तुराब अली क़लंदर काकोरवी
"ये जब्र भी देखा है तारीख़ की नज़रों ने,
लम्हों ने ख़ता की थी, सदियों ने सज़ा पाई।"
- मुज़फ़्फ़र रज़्मी
Compiled :Pawan Raj Singh
Courtesy:Social Media
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