दो दिन हुए घर पर ही तशरीफ़ फर्मा हूँ, तबियत नासाज़ है और शहर में रजाई तोड़ सर्दी ने नाक में दम कर रखा है। कोई अगर मुझसा शायर होता तो माशूक के न निकलने पर ये कह उठता,
न निकलो तुम तो जिंदगी दूभर होती जाती है.....
मन चलों की आँख की जकात निकल जाती है....
खैर हुआ यूँ के सारे शहर को खबर लग गई की हम ईद का चाँद हो गए हैं। उस दौर की बात का अंदाज नहीं लगाया जा सकता जब न तार थे न ख़त लोग कबूतर के गले में दिल का हाल लिख भेज देते थे, या किसी इल्म से कोई खबर इधर से उधर होती होगी। रही बात आज के दौर हमारे इस ताजा मसले की दोस्तों ने मोबाइल और व्हाट्सएप्प पर पूछना शुरू कर दिया। क्या हुआ कहाँ हो सब खेरियत तो है, ये हाल हैं हमारे और हमारी दोस्ती के,
दिल दुःखी भी है वो इस बात से की आज से जश्ने-रेख़्ता भी दिल्ली में शुरू हो गया है, मैं चाहकर भी नहीं जा सका वहां पर कुछ मजबूरिये-हालात और कुछ सादगी हमारी।
कल फिर नया सूरज निकलेगा नई उम्मीदों के साथ और हम भी उम्मीद रखते हैं कल मीर अपनी महफ़िल में होंगे और मुरीदों दोस्तों की जो जो परेशानियां और दिल के हाल हैं सब सुने जाएंगे।
बुजुर्गों से भी मिले यही अरसा हुआ वो भी क्या सोचते होंगे ।चलो खैर कोई बात नहीं, मालिक ने जब आदम को बनाया तो मिट्टी से बनाया था, फितरती चाल रक्खी अब जब हम भी उसी राह पर चल रहे हैं तो फितरती तो होंगे ही। कभी कोई गम सताएगा, कभी कोई ख़ुशी में शरीक होंगे। कभी सेहतियाब होंगे तो कभी बीमार होंगे। कभी गर्मी गमगीन करेगी तो कभी सर्द हवाएँ मकानों में कमरों में बन्द कर देगी।
कल एक बेहतर कल होगा और सभी इंसानियत की बेहतरी की दुआ के साथ......
~पवन राज सिंह
न निकलो तुम तो जिंदगी दूभर होती जाती है.....
मन चलों की आँख की जकात निकल जाती है....
खैर हुआ यूँ के सारे शहर को खबर लग गई की हम ईद का चाँद हो गए हैं। उस दौर की बात का अंदाज नहीं लगाया जा सकता जब न तार थे न ख़त लोग कबूतर के गले में दिल का हाल लिख भेज देते थे, या किसी इल्म से कोई खबर इधर से उधर होती होगी। रही बात आज के दौर हमारे इस ताजा मसले की दोस्तों ने मोबाइल और व्हाट्सएप्प पर पूछना शुरू कर दिया। क्या हुआ कहाँ हो सब खेरियत तो है, ये हाल हैं हमारे और हमारी दोस्ती के,
दिल दुःखी भी है वो इस बात से की आज से जश्ने-रेख़्ता भी दिल्ली में शुरू हो गया है, मैं चाहकर भी नहीं जा सका वहां पर कुछ मजबूरिये-हालात और कुछ सादगी हमारी।
कल फिर नया सूरज निकलेगा नई उम्मीदों के साथ और हम भी उम्मीद रखते हैं कल मीर अपनी महफ़िल में होंगे और मुरीदों दोस्तों की जो जो परेशानियां और दिल के हाल हैं सब सुने जाएंगे।
बुजुर्गों से भी मिले यही अरसा हुआ वो भी क्या सोचते होंगे ।चलो खैर कोई बात नहीं, मालिक ने जब आदम को बनाया तो मिट्टी से बनाया था, फितरती चाल रक्खी अब जब हम भी उसी राह पर चल रहे हैं तो फितरती तो होंगे ही। कभी कोई गम सताएगा, कभी कोई ख़ुशी में शरीक होंगे। कभी सेहतियाब होंगे तो कभी बीमार होंगे। कभी गर्मी गमगीन करेगी तो कभी सर्द हवाएँ मकानों में कमरों में बन्द कर देगी।
कल एक बेहतर कल होगा और सभी इंसानियत की बेहतरी की दुआ के साथ......
~पवन राज सिंह
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें