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शनिवार, 22 अक्टूबर 2022

कलाम 16

 आतिश-ए-दिल को बुझायें तो बुझायें कैसे 

इश्क़ की दास्ताँ को सुनायें तो सुनायें कैसे 


तेरे फ़िराक का ग़म अब मिटता नहीं सनम

अश्क़ आँखों के सुखायें तो सुखायें कैसे


इश्क़ की कश्ती तो अभी साहिल से दूर है 

आशिक़ को डूबने से बचायें तो बचायें कैसे


रौशनी क्या है नज़्ज़ारा किसे कहते हैं लोग

चराग़-ए-आरजू को जलायें तो जलायें कैसे


इक फूल भी न उग सका उस वीराने दिल में 

सहरा को बाग़-ए-गुल बनायें तो बनायें कैसे


राज' क्या जाने रहता है कहाँ,  दिलबर मेरा

कूचा-ए-यार का पता लगायें तो लगायें कैसे 

~पवन राज सिंह

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