महान सूफी संत अबू हफस हदाद पहले एक लोहार थे। हदाद का अर्थ ही लोहार है। एक बार हदाद को एक कनीज से इश्क हो गया। उनका लोहा पीटने या कुल्हाड़ी बनाने में मन ही न लगता। जैसे ही हथौड़ा हाथ में लें, कनीज का चेहरा आंख के सामने दौड़ जाता और हाथ कमजोर पड़ जाते। कनीज से उन्होंने अपने दिल की बात बताने की कई जुगत भिड़ाई, मगर कोई भी काम नहीं आई।
थक-हारकर एक रोज वह अपने नजदीक के एक बहुत मशहूर जादूगर के पास पहुंचे और उससे प्रार्थना की कि वह कोई जादू करे। अबू के दिल का हाल जानकर जादूगर उनकी राह आसान करने को तैयार हो गया। जादूगर ने उनसे कहा कि तुम्हें चालीस दिन तक प्रार्थना और नेक कामों से दूरी बरतनी पड़ेगी, तभी जादू का असर होगा। जादूगर की बात मान हदाद घर लौट आए और उन्होंने प्रार्थनाएं और जो भी छोटे-मोटे नेक काम वह किया करते थे, सब छोड़कर जादू के इंतजार में बैठ गए।
चालीस रोज बाद जब वह कनीज उन्हें नहीं मिली तो वह जादूगर के पास फिर पहुंचे और बोले कि अब भी वह मुझे नहीं मिली। जादूगर ने उनसे पूछा कि इस बीच तुमने कोई नेक काम तो नहीं किया? उन्होंने कहा- नहीं। जादूगर बोला, याद करो, तुमने किया है। तब अबू हफस ने बताया कि चलते वक्त वह रास्ते में पड़ने वाले कंकड़-पत्थर बीनकर किनारे करते रहे कि किसी को चोट न लग जाए।
तब जादूगर मुस्कुराया और बोला, ‘जिसकी प्रार्थनाओं को छोड़े हुए हो, वह तुम्हारी इस मामूली सी नेकी को भी पसंद करके तुम्हारे साथ खड़ा है। उसे छोड़कर तुम कनीज से दिल लगाए हो?’ यह बात हदाद के दिल पर लग गई और वह वहीं से ईश्वर की ओर लौट पड़े। अपनी सेवा, प्रेम, त्याग और समर्पण से उस दौर के बड़े सूफी संत अबू हफस हदाद बने।
Compiled By
Pawan raj singh
Courtesy:Anonymous
थक-हारकर एक रोज वह अपने नजदीक के एक बहुत मशहूर जादूगर के पास पहुंचे और उससे प्रार्थना की कि वह कोई जादू करे। अबू के दिल का हाल जानकर जादूगर उनकी राह आसान करने को तैयार हो गया। जादूगर ने उनसे कहा कि तुम्हें चालीस दिन तक प्रार्थना और नेक कामों से दूरी बरतनी पड़ेगी, तभी जादू का असर होगा। जादूगर की बात मान हदाद घर लौट आए और उन्होंने प्रार्थनाएं और जो भी छोटे-मोटे नेक काम वह किया करते थे, सब छोड़कर जादू के इंतजार में बैठ गए।
चालीस रोज बाद जब वह कनीज उन्हें नहीं मिली तो वह जादूगर के पास फिर पहुंचे और बोले कि अब भी वह मुझे नहीं मिली। जादूगर ने उनसे पूछा कि इस बीच तुमने कोई नेक काम तो नहीं किया? उन्होंने कहा- नहीं। जादूगर बोला, याद करो, तुमने किया है। तब अबू हफस ने बताया कि चलते वक्त वह रास्ते में पड़ने वाले कंकड़-पत्थर बीनकर किनारे करते रहे कि किसी को चोट न लग जाए।
तब जादूगर मुस्कुराया और बोला, ‘जिसकी प्रार्थनाओं को छोड़े हुए हो, वह तुम्हारी इस मामूली सी नेकी को भी पसंद करके तुम्हारे साथ खड़ा है। उसे छोड़कर तुम कनीज से दिल लगाए हो?’ यह बात हदाद के दिल पर लग गई और वह वहीं से ईश्वर की ओर लौट पड़े। अपनी सेवा, प्रेम, त्याग और समर्पण से उस दौर के बड़े सूफी संत अबू हफस हदाद बने।
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