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शुक्रवार, 6 दिसंबर 2019

फिजूल की चिंताएँ

एक फकीर को उसके सेवक जो भी सेवा में देते थे, सब कुछ शाम को बाँट देते , और रात को फिर से मालिक के भिखारी हो कर सो जाते थे।
यह उनकी ज़िन्दगी का शानदार और सुनहरा नियम था, एक रोज़ वो फकीर साहिब सख़्त बीमार हो गये, लेकिन फिर भी ख़ुदा की इबादत, रोज़ का भजन सिमरन नहीं छोड़ा।
उनकी ये हालत देखकर उनकी बीवी ज़ोर ज़ोर से रोने लगी, फकीर साहिब ये देखकर ज़ोर से हँसने लग, और ख़ुदा का शुक्र करने लगे, कि ऐ मेरे शहनशाह, तुम मुझे, मेरी उम्मीद से बहुत ज़्यादा प्यार करते हो।
उनकी हालत देखकर हकीम ने कहा, कि अब तो मुझे इनके बचने की कोई सूरत नज़र नहीं आती है, सेवा करो और खुदा को याद करो।
उनकी बीवी ने सोचा कि अगर ऐसे मुश्किल वक्त में दवादारू की जरूरत पड़ी या रात को वैद्य जी को बुलाना पड़ा तो मैं क्या करूँगी , उसने ये सोच कर सेवा में आये हुए रूपयों में से पाँच दीनार बचा कर रख लिए
आधी रात को  फकीर तेज़ दर्द से तड़पने और छटपटाने लगे
उन्होंने दर्द से कराहते हुए अपनी बीवी को बुलाया और पूछा कि देखो मुझे लगता है कि मेरे जीवन भर का जो नियम था, मुझे दान का एक पैसा भी अपने पास नहीं रखना, मेरी वो प्रतिज्ञा शायद आज टूट जायेगी, वो भी मेरे आखिरी वक्त में, ऐ खुदा मुझे माफ कर देना
मैंने आने वाले कल के लिए रात को कभी भी कोई इन्तज़ाम नहीं किया, बल्कि अपने ख़ुदा पे पक्का भरोसा रखा और मेरे मौला ने हमेशा मेरी लाज रखी*
लेकिन आज मुझे  बहुत डर लग रहा है कि जैसे आज हमारे घर में दान में आये हुए, सेवा से बचे हुए कुछ रुपये रखे हैं भलीमानस अगर तूने रखे हों, तो जल्दी से तूँ उन्हें  ज़रूरतमन्दों को बाँट दो।
नहीं तो मुझे ख़ुदा के सामने शर्मिंदा होना पड़ेगा, जब मेरा मालिक मुझसे ये पूछेगा कि, आखिरी दिन, तूने अपना भरोसा क्यूँ तोड़ दिया और कल के लिये कुछ दीनार या रूपये क्यूँ बचा लिए?
फकीर की बीवी  घबरा कर रोने लगी और हैरान हो गई कि इन्हें कैसे पता चला!?
उसने जल्दी से वो  पाँच दीनार जो बचाए थे, निकाल कर फकीर के आगे रख दिए और रोते हुए कहा कि मुझसे भूल हो गई!, मुझे माफ कर दीजिए, फकीर भी रोने लगा और रोते हुए बोला, खुदा के घर मे सच्चे दिल से पछतावा करते हुए माफी माँगने वालों को माफ कर दिया जाता है, जाओ मेरे खुदा ने तुझे माफ किया।बीवी दोनों हाथ जोड़ कर रोते हुए बोली, जी मैने तो ये सोचकर पाँच दीनार रखे थे कि रात को अगर चार पैसों की ज़रूरत पड़ी, तो मैं ग़रीब कहाँ से लाऊँगी जी ??
फकीर ने दर्द में भी हँसते हुए उसे समझाया।, अरी पगली जिस खुदा ने हमें हर बार दिया है, हर रोज़ दिया है, आज तक भरपूर दिया है।
क्या कभी हम भूखे रहे ,क्या आज तक हमारी हर जरूरत पूरी नहीं हुई ? ज़रा सोचो, हमारा एक भी दिन उसकी रहमत के बिना या उसके प्यार के बिना गुज़रा है ?
जो सारी दुनिया को उनकी ज़रूरत की हर शै अगर सुबह देता है, तो साँझ को भी देता है, तो क्या वो खुदा आधी रात को नहीं दे सकेगा?
तू ज़रा बाहर  दरवाजे पर तो जा के देख, शायद कोई ज़रूरतमन्द खड़ा हो। बीवी बोली, जी आधी रात को भला कौन मिलेगा ??
फकीर बोला, तुम फौरन बाहर जा कर देखो, मेरा खुदा बहुत दयालु है, वही कोई ज़रिया बनायेगा, बीवी आधे अधूरे मन से वो पाँच दीनार ले कर  दरवाज़े पर गई।
जैसे ही उसने किवाड़ खोले, तो देखा एक याचक खड़ा था। वो बोला, बहन मुझे पाँच दीनार की सख्त जरूरत है, फकीर की बीवी ने बहुत हैरानी से अपनी आँखों को मला, कि कहीं मैं कोई सपना तो नहीं देख रही हूँ।
जब उसने वही पाँच चाँदी के रूपये उसे दिये तो उसने कहा, कि खुदा बहुत दयालु है, वो तुम्हारे पूरे परिवार पर अपनी दया मेहर बरसायेगा बहन। हैरान और परेशान, जब वो अपने पति को बतलाने गई, कि उसने पाँच दीनार एक ज़रूरतमन्द को दे दिये, और वो दुआऐं देता हुआ गया है।
फकीर ने कहा. देखो भाग्यवान देने वाला भी वही है, और लेने वाला बन कर भी वो ख़ुद ही आता है, हम तो फिज़ूल की चिन्तायें खड़ी कर लेते हैं, फिर चिंता में बुरी तरह से बँध जाते हैं।
फिर मोह ममता के झूठे बँधनों के टूटने से बहुत दुखी होते हैं रोते हैं,चिल्लाते हैं।
 अब मैं खुदा के सामने सिर उठा कर शान से कहूँगा कि मेरे प्रीतम जी, मुझे केवल एक तेरा ही सहारा था, मैंनें आखिरी साँस तक अपना प्रण निभाया है, मैने अपने सतगुरू से ये वायदा किया था, कि सारी उम्र, किसी के आगे हाथ नहीं फैलाऊँगा दाता।
जिसका परमात्मा में और अपने मुर्शिद में पक्का भरोसा है उसका फिर कोई बंधन नहीं कोई दुख नहीं रहता।
लेकिन दुनिया वालों को परमात्मा में या अपने गुरू पर पूरा और पक्का भरोसा नहीं है , हम ज़रा विचार करें कि हमारा भरोसा किन चीजों में है। बीमा कंपनी में है, बैंकों में जमा, अपने रूपयों पर है, अपनी पत्नी  में है, पति में है, परिवार में है, माता पिता में है, बेटे बेटी पर है हमारे तो कितने भरोसे हैं।
फकीर ने अपने मुँह पर चादर डाल ली और कहने लगे कि ऐ मेरे मौला, मुझे अपने कदमों में जगह बख्शो और इतना कह कर शाँति से सो गये। उस फकीर ने खुदा के नाम का सिमरन करते हुए चोला छोड़ दिया और मुकामे हक चला गया।
जैसे केवल पाँच दीनार उसके दुखों का कारण थे। उनके कारण ही वो बेचैन थे, मन पर बोझ था, बंधन था! बाँट दिये बँधन मुक्त हो गये।हम जुबान से तो सारे ही कहते हैं कि हम सारे दुखों से आज़ाद होना चाहते हैं लेकिन आज़ाद होने के लिए हम जो भी कर्म करते हैं वही हमें बांध लेते हैं।एक भरोसा, एक बल, एक आस, बिस्वास
स्वाँति सलिल, गुरू चरण हैं।
Compiled By
Pawan Raj Singh
Courtesy:Anonymous

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