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मंगलवार, 31 दिसंबर 2019

कहने में हिचक तो रहा हूँ पर .......

आज 31 दिसम्बर का दिन है अंग्रेजी परम्परा के अनुसार आज साल का आखिरी दिन है, क्योंकि जिंदगी पिछले 200-300 बरस से अंग्रेजियत में गुजर रही है। हर मुल्क के हर आदमी को नए जमाने की हवा अपने आगोश में ले रही है। अलग अलग तहजीबों, अलग अलग मुल्कों के अपने अपने चलन जो जीने के थे वो रफ़्ता रफ़्ता कम होते चले गए या नई पीढ़ी ने पुरानी पीढ़ी की परम्पराओं की चादरों को पुराने संदूकों में तह करके रख दिया और नया खोजने की तलाश में अंग्रेजियत का जामा ओढ़ने की होड़ में इसे हर तरह से मुकम्मल समझ लिया। खैर, अब इसी की बात की जाये इसी की लाइन पर या कदमों पर कदम-ताल की जाये तो मुद्दआ ये है, इस साल के आक्सीजन सलेंडर में कुछ ही घण्टों का आक्सीजन बचा है, जिसमें हर शख्स हर एक उस ग़म को भुला देना चाहता है जो दिन रात उसे घेरे रहता है, कहीं न कहीं किसी न किसी दे हल्की सी मुस्कान भी मिली हो, ऐसे छोटे छोटे हसीन लम्हों का जहन में पिरोकर ख़ुशी का लाव-लश्कर अपने दिल में लिए सभी इस साल को अलविदा कहना चाहते हैं। नयी उम्मीदों और नए ख़्वाबों की ताबीर के लिए नए साल का सुनहरा चेहरा देखने को हर कोई उसी भीड़ का हिस्सा है जो आज से ज्यादा या यूँ कहें इस साल से ज्यादा पा लेना चाहते हैं।
 जिंदगी अपनी करवटों का खेल खेलती रहती है आदमी की सोच ऊपर वाले के मुकाबले कम है, ऊपर बैठ कर वो जिस तरह के खेल खेलता है उसका इल्म इंसान को न आदम के जमाने में था न आज के जमाने में है, पर जमाना प्रोफेशनल और लिखा-पढ़ा हुए जा रहा है। इंसान को जो तरबियत मिल रही है वो ऐसी है की तुम सब कुछ कर सकते हो।  किसी के सहारे या जरिया होने का या किसी का शुक्रिया या किसी साथ लेने का या निभाने का सबक आज के वक्त की यूनिवर्सिटीज में नहीं सिखाया जाता। सिखाया जाता है  वो ये है जो कुछ है सो तुम्हारे ही हाथ में है। तुम तुम कर कर के आज की पीढ़ी को इतना खुदगर्ज़ कर दिया है की बस चन्द और वक्त के बाद इंसान इंसान को देखना, पसन्द करना छोड़ देगा, तो ये हाल हैं इस जमाने के।
अच्छा इस साल और नए साल के इस मुबारक मौके के बाद क्या होगा, लोग ये जानते हैं जिंदगी में जो भी हाजिर-ए-हालात हैं वो बदलने वाले नहीं हैं।

पर फिर भी भीड़ का हिस्सा बनना है दिल के बहलाने के लिए कोई मुद्दआ बेवजह ही सही होना चाहिए। मैं कुछ कुछ इसी भीड़ में हिस्सा हूँ क्योंकि इसी दौर में हयात मैंने भी पाई है, पर कुछ बातें जो बुजुर्गों के कदमों में बैठकर सीखीं है उन्हें इशारे इशारे में लिख रहा हूँ। यूँ नहीं है के सभी कुछ बुरा है इस दौर का पर ये दौर हमसे हमारी जड़ों के जुड़ने से दूर करता है। नए दौर और पुराने दौर में कोई जुड़ाव की बात हो कोई ऐसा केमिकल फार्मूला हो जो इस केमिकल लोचे को खत्म कर सके, इसी उम्मीद के साथ अपनी कलम को इस मकाम और आराम करने की खातिर रोकता हूँ।

कहने में हिचक तो रहा हूँ पर .......आप सभी को नए साल की मुबारकबाद पहले ही से....
~पवन राज सिंह

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