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मंगलवार, 31 दिसंबर 2019

महबूब का तमाशा

अब वो ख्वाबों में भी अक्सर नहीं आता जो,
हरदम जहन के पैरों में एक बेड़ी सा बन्धा रहता था। जब मैं उसे तवज्जो नहीं भी देता
 तो वो कदमों में अटक कर मेरे जहन को मुँह
के बल गिरा देता था और अपने वजूद को मेरे
ज़हन में याद कराता रहता। वो महबूब जो इस दिल को तोड़ गया, वो ही जहन में इस तरह बस जाता है। घूमता रहता है दिन के हर पल में और रात के ख्वाबों की दुनिया में, इस
तरह की इक तरफ़ा मुहब्बतें बहुत दिनों तक
सताती हैं। इक अच्छे नेक दिल इंसान को
मुहब्बत का छोटासा प्यार भरा सफर, इक लम्हे
के भी ख्वाब के छोटे से हिस्से जैसा नसीब
होता है। उसको खेंच कर जब जहन लम्बा
दरिया या सागर सा कर दे और फिर इस पहाड़
को सर मारने से भी ये गम का नारियल न फूटे, तो ऐसा जानो कि वो इक मुहब्बत का धोका तुम्हारे अंदर इक आतिश पैदा करने वाला है।
      कुछ सालों ये याद, ये तड़प जहन को परेशां रखती है। फिर जब उस इन्तजार से जब जी उक्ता जाता है।
तो वो इंसान के कद और तमीज के बदलने
का ऐसा वक्त होता है जब सोना भी कुंदन सा
निखर जाता है। आपको ये महसूस हुआ तो
समझो इस रास्ते के सफर की हद में इक
कलन्दर या दार्शनिक है और तुम वो शख़्स
बनने की शुरुआत पर हो।
अब वो ख्वाबों में भी नहीं आता  "महबूब का तमाशा"

~पवन राज सिंह


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